शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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चढ़कर हिमगिरि की चोटी जो
अपना परचम फहराते हैं,
नूतन इतिहास बनाते हैं।
जो डरें नहीं बाधाओं से,
बस आगे बढ़ते जाते हैं।
आकाश अनन्त हुआ तो क्या,
ऊँची परवाज़ लगाते हैं।
कितना भी दुर्धुष हो दुश्मन,
निर्भय होकर टकराते हैं।
नूतन इतिहास बनाते हैं।
मातृभूमि रक्षा हित अपना
तन मन धन अर्पित जो कर दे।
अपने प्यारे देश के लिए,
फाँसी पर जो गरदन रख दे।
ऐसे दिलवाले ही जग में,
अपना नाम कमा जाते हैं।
नूतन इतिहास बनाते हैंl
अपनी कलम चला कर के कवि,
सुप्त भाव को जागृत करता।
हर इक दिल में देशभक्ति की,
बुझी आग में शोले भरता।
आज़ादी की लेकर मशाल,
घर-घर में अलख जगाते हैं।
नूतन इतिहास बनाते हैं॥
परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है