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समस्याओं का समाधान महावीर के सिद्धान्तों-उपदेशों में निहित

ललित गर्ग
दिल्ली

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महावीर जन्म जयन्ती- २५ अप्रैल विशेष….

भगवान महावीर की जन्म जयन्ती मनाते हुए हमें महावीर बनने की तैयारी करनी होगी,हम महावीर को केवल पूजें ही नहीं,बल्कि उनको जीएं-तभी जयन्ती मनाने की सार्थकता है। उन्होंने जो शिक्षाएं दी,वे जन-जन के लिए अंधकार से प्रकाश,असत्य से सत्य एवं निराशा से आशा की ओर जाने का माध्यम बनी। इसलिए भी जैन धर्म के अनुयायियों ही नहीं,बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए उनकी जन्म-जयन्ती मनाने का महत्व है। महावीर लोकोत्तम पुरुष हैं,उनकी शिक्षाओं की उपादेयता सार्वकालिक,सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है। दुनिया के तमाम लोगों ने इनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली है। सत्य,अहिंसा,अनेकांत,अपरिग्रह ऐसे सिद्धान्त हैं,जो हमेशा स्वीकार्य रहेंगे और विश्व मानवता को प्रेरणा देते रहेंगे। महावीर भगवान ने लाखों-लाखों लोगों को आलोकित किया है।
यह समय कोरोना महासंकट का समय है,ऐसे में महावीर की शिक्षाओं को अपनाकर हम हमारी शिक्षा नीति को परिपूर्णता प्रदत्त कर सकते हैं एवं महासंकट से मुक्ति पा सकते हैं।
भगवान महावीर की जन्म जयन्ती हम जागने की दस्तक है। उन्होंने बाहरी लड़ाई को मूल्य नहीं दिया, बल्कि स्व की सुरक्षा में आत्म-युद्ध को जरूरी बतलाया। उन्होंने जो कहा,सत्य को उपलब्ध कर कहा। उन्होंने सबके अस्तित्व को स्वीकृति दी। ‘णो हीणे णो अइरित्ते’-उनकी नजर में न कोई ऊंचा था, न कोई नीचा। उनका अहिंसक मन कभी किसी के सुख में व्यवधान नहीं बना। महावीर का यह संदेश जन-जन के लिए सीख बने- ‘पुरुष! तू स्वयं अपना भाग्यविधाता है।’ औरों के सहारे मुकाम तक पहुंच भी गए तो क्या ? इस तरह की मंजिलें स्थायी नहीं होती और न इस तरह का समाधान कारगर होता है। यह सीख भारत की नवपीढ़ी विशेषतः छात्रों के लिए जीवन-निर्माण का सशक्त माध्यम बन सकती है।
भगवान महावीर ने कितना सरल किन्तु सटीक कहा हैं- सुख सबको प्रिय है,दुःख अप्रिय। सभी जीना चाहते हैं,मरना कोई नहीं चाहता। हम जैसा व्यवहार स्वयं के प्रति चाहते हैं,वैसा ही व्यवहार दूसरों के प्रति भी करें। यही मानवता है और मानवता का आधार भी। मानवता बचाने में है, मारने में नहीं। किसी भी मानव,पशु-पक्षी या प्राणी को मारना,काटना या प्रताड़ित करना स्पष्टतः अमानवीय है,क्रूरतापूर्ण है। मूल्यों का सम्बन्ध तो ‘जियो और जीने दो’ जैसे सरल श्रेष्ठ उद्घोष से है।
समय के आकाश पर आज कोरोना महामारी,युद्ध, शोषण,हिंसा जैसे अनगिनत प्रश्नों का कोलाहल है। जीवन क्यों जटिल से जटिलतर होता जा रहा है ? इसका मूल कारण है कि महावीर ने जो उपदेश दिया,हम उसे आचरण में नहीं उतार पाए। इसी कारण मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर पड़ा,धर्म की व्याख्या में हमने अपना मत, अपना स्वार्थ,सुविधा व सिद्धान्त जोड़ दिया। मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है,उन सबका समाधान महावीर के शिक्षा-दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है।
यह असंभव बात है कि इंद्रिय जगत में आदमी जीए और वह सुख या दुःख एक का ही अनुभव करे,यह द्वंद्व बराबर चलता रहेगा। तब व्यक्ति के मन में एक जिज्ञासा पैदा होती है कि ऐसा कोई उपाय है जिससे सुख को स्थायी बनाया जा सके ? इसका समाधान है स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार। इसके लिए जरूरी है हर क्षण को जागरूकता से जीना। उसको जीने के लिए भगवान महावीर ने कहा था-‘खणं जाणाहि पंडिए’,जो क्षण को जानता है,वह सुख और दुःख के निमित्त को जानता है। उनकी यह प्रेरणा वर्तमान शिक्षा-जगत एवं शिक्षार्थियों के लिए अमूल्य प्रेरणा है।
भगवान महावीर ने अपने स्वभाव में रमण करने एवं आत्म-साक्षात्कार की प्रेरणा दी। जीवन की सफलता-असफलता,सुख-दु:ख,हर्ष-विषाद का जिम्मेदार सिवाय खुद के और कोई नहीं है। धर्म का महत्वपूर्ण पड़ाव यह भी है कि हम सही को सही समझें और गलत को गलत। सम्यक्त्व दृष्टि का यह विकास मुक्ति का ही नहीं,सफल एवं सार्थक जीवन का हस्ताक्षर है। इस मायने में महावीर का शिक्षा-दर्शन पवित्रता का नया आकाश,व्यक्ति निर्माण का नया मार्ग,नया विचार,नए शिखर छूने की कामना, कल्पना और सपने हैं।
आज विद्यालयों,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में ज्ञान-विज्ञान की इतनी शाखाएं हो गई हैं,जितनी अतीत में कभी नहीं थीं,लेकिन नैतिकता का जितना ह्रास आज हुआ है और हो रहा है,उतना अतीत में कभी नहीं था। ऐसे क्षणों में ‘सम्मत्तदंसी न करंति पावं’ को चिंतन सूत्र बनाएं तो यह संतुलन अस्त-व्यस्त और बिखराव भरी जीवनशैली को तनावों की भीड़ से बचा सकता है।
महावीर भविष्य द्रष्टा और भविष्य वक्ता थे। वे अपने अनुयायियों को भावी जन्म की सूचनाएं देकर अप्रमत्त,विवेकशील एवं संयमी बनाना चाहते थे। स्वर्ग-नरक का बंध बताकर मन में वैराग्य जगाते थे। हजारों उदाहरण इतिहास में सुरक्षित हैं,जिन्हें महावीर ने अगले जन्म का दर्शन देकर सम्यग् दृष्टि-बोध दिया। महावीर पारदर्शी ज्ञान के धनी थे। जो भी चरणों में पहुंचता,मन की बात पकड़ लेते। बिना पूछे ही उसके मन में छुपे प्रश्न का उत्तर दे देते। सत्योपलब्धि का यह क्षण महावीर की करुणा, अहिंसा,मैत्री और जागरूकता का प्रतीक बन जाता। महावीर के जीवन में ‘पर’ कोई था ही नहीं। उन्होंने सबके बीच एक समान अपनी करुणा बांटी। भले प्रिय शिष्य गौतम हो या फिर चण्डकौशिक सर्प। करुणा का स्रोत समत्व की चट्टानों से समान वेग से प्रवाहित हुआ।
महावीर ने सही विश्वास,उचित आचरण और ज्ञान जैसे विचारों पर जोर दिया,उनकी नजरों में ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। महावीर बनना है तो आग्रही पकड़ छोड़नी होगी। हर परिस्थिति में प्रतिकूलता को सहने की क्षमता जगानी होगी। षट्काय जीवों की हिंसा के प्रति संवेदनशील मन को जगाना होगा। पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए पापभीरू, अप्रमत्त एवं संयमी बनना होगा। महावीर को पढ़ना, सुनना,समझना जितना आसान है महावीर जैसा बनना उतना ही साधना सापेक्ष है,मगर ऐसा सपना देखने का संकल्प भी तो उन्हीं का जगाया हुआ है। उन्होंने ही तो हमारे भीतर यह आस्था,श्रद्धा और आत्मविश्वास पैदा किया था कि ‘तुम’ और ‘मैं’ में कोई फर्क नहीं,बिंदु भी सिंधु बन सकता है। भक्त भी भगवान हो सकता है।
आज जरूरत है हम महावीर को सिर्फ शास्त्रों में ही न पढ़ें,प्रवचनों में न सुनें,पढ़ी हुई और सुनी हुई ज्ञान-राशि को जीवन में उतारें।
आज के युग की जो भी समस्याएं हैं,चाहे कोरोना महामारी या पर्यावरण की समस्या हो,हिंसा एवं युद्ध की समस्या हो,चाहे राजनीतिक अपराधीकरण एवं अनैतिकता की समस्या,चाहे तनाव एवं मानसिक विकृतियां हो,चाहे आर्थिक एवं विकृत होती जीवनशैली की समस्या हो-इन सब समस्याओं का समाधान महावीर के सिद्धान्तों एवं उपदेशों में निहित है। इसलिये आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं,बल्कि उनके द्वारा जिए गए आदर्श जीवन के अवतरण की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें,तभी महावीर जन्म-जयन्ती पर महावीर की स्मृति एवं स्तुति करना सार्थक होगा।

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