तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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पहले के समय
लेखक का लेखन,
पाठक के
दिल तक पहुँचने में,
करता था
सशक्त पुल का काम,
परन्तु आज
प्रसिद्धि की चाह में
पड़ गई हैं दरारें।
कहीं चरमराकर,
ढह ना जाए
इससे पहले,
बदलनी होगी हमें
अपनी पंगु मानसिकता।
बचानी होगी अपनी
साहित्यक धरोहर,
सपनों की दुनिया से
निकल कर,
जीना होगा
यथार्थ का जीवन।
स्थापित करना होगा
कभी ना टूटने वाला,
एक अटूट सम्बन्ध
कहाँ थी तेरी मंज़िल,
किस ओर जा रहा है।
पुरस्कार की
अंधी दौड़ में,
पीछे छूट रहा है
स्वस्थ सशक्त साहित्य।
जैसे ‘सरोगेसी’ प्रक्रिया से
किसी का बच्चा,
किसी की किराए की
कोख़ में पलता है,
वैसे ही कुछ
लेखकों ने बेच दी है
अपनी माँ सरस्वती की कोख,
कुछ नामदारों के हाथों।
जिसमें पल रहे हैं,
सत्य से कोसों दूर
उन नामदारों के
विचारों के,
काल्पनिक बच्चे॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।