ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…..
कैसी विपदा आन पड़ी है,
नज़र नहीं आती हरियाली
सूख गए हैं बाग-बगीचे,
लपट दें रही गरम बयाली।
कैसे झरने गीत सुनाएं,
बांध जोहड़ सब सूख गए हैं
सूनी पड़ी है गाँव की गलियाँ,
जिम्मेदारी से चूक गए हैं।
सूखे से अब लड़ना होगा,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
फूले-फले सब जीव और जन्तु,
कल-कल झरने गीत सुनाएं।
प्रकृति है जीवनदायिनी,
क्यों इससे खिलवाड़ करें ?
हरी-भरी हो धरा हमारी,
आओ कुछ बलिदान करें।
आओ मिलकर पेड़ लगाएं,
पर्यावरण अगर बचाना है।
धरती-आकाश को स्वच्छ करें,
जन-जन में अलख जगाना है॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।