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पुरूष बेचारा..!

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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औरत की पीड़ा तो सबने लिखी पर,
जाने क्यों, पुरूष बेचारा बिसारा गया ?
औरत पर दया कर लेते हैं सब कोई,
गृहस्थी में पुरूष बेचारा मारा गया।

जोरू की सुने तो माँ है कहती,
‘है बेटा ही हाथ से निकल गया’
माँ की सुने तो जोरू है रूठती,
करेगा, कौन बेचारे पर है जी दया ?

घर वालों की सुने तो ससुराल है रुस्ता,
ससुर की सुनने पर रूठते हैं घर वाले
शादी के बाद होती हैं ज्यों काली रातें,
मुश्किल ही होते हैं जीवन में उजाले।

बजुर्गों का दायित्व और बच्चों की चिन्ता,
किस बात को कैसे और कब तक निभाएं ?
चेहरे पर मुस्कान और दिल में है हर पीड़ा,
किसको बताएं और किस-किससे छुपाएं ?

चाहता है बताना कभी चाह कर किसी से,
उससे पहले ही, सुनने वाले अपनी सुनाएं
इस नर पुराण में हैं नर की कई दुविधाएं,
नारी को यह सब कोई क्यों कर समझाएं ?

पुरूष बेचारा हर गम को ले छाती में,
घुट-घुट है पिसता और मर है जाता।
कर दफ़न हर राज वह अपने ही साथ,
दिल की बात को न कभी सामने लाता॥

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