श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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आ लौट के आजा हमारे खोए हुए सुनहरे बचपन,
दिल तुझे पुकार रहा है तुम्हारा ही अपना रूप पचपन।
‘पचपन से बचपन तक के’ मधुर ख्वाबों में मैं खोया,
कुछ ऐसे पल याद आ गए, तब मैं जी भर कर के रोया।
याद है मुझे पचपन से बचपन तक की सारी बिताई बातें,
बचपन में दादा-दादी के संग खूब ठिठोली हम थे करते।
चाचा के कंधे पर बैठकर ‘मॉर्निंग वॉक’ करने को जाते,
हम दोनों बागों में जाते, तितली पकड़ के चाचा लाते।
अभी भी याद है थैले में स्लेट-पेंसिल, हाथ में बोरा लेकर,
पापा रोज स्कूल पहुँचाने जाते साइकिल पर बिठाकर।
मिट्टी का घर-आँगन था, बरसात में फिसल कर गिरते थे,
मम्मी डाँट लगाकर नहाने को कहती, हम बड़ा डरते थे।
अभी भी वो दिन याद है, बैलगाड़ी लेकर मामा लेने आते थे,
नाना बाजार से लाकर, तार-खजूर-रसमलाई भी खिलाते थे।
मैं पचपन की हूँ, शरारत देखती हूँ नाती-पोते के बचपन की,
आँखों में मोटा चश्मा है, नाती-पोते से याद आई बात बचपन की।
नहीं भूल पाता हूँ यादें, याद मुझे है अभी तक,
खुशी का दिन बीता है बचपन से पचपन तक॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |