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बचाना है एक शहर

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बचाना है एक शहर,
जहां चाँदनी रात में आती है
सूरज दिन में निकलता है,
लेकिन अतीत में डूबा शहर
भविष्य में तो क्या!
वर्तमान से सहमा डरता है,
किंतु बचाना है एक शहर!

बर्फीली हवाओं में,
कुछ ऐसा सा छिपा है चमकता कण
चिमनियों से उठती ऐंठन,
छोटी-छोटी उड़न तश्तरियों में
दु:ख की ज़िद जाने-अनजाने करती हैं
लेकिन बचाना है एक शहर!

मायूस चेहरे असंख्य,
अपनी आँखों में
दर्द-दंश को मिटाने की मांग करते हैं,
सूरज तप कर चाँद से मिल शांत हो जाता है
न कोई परिचय,न कोई संदेश देता है,
संदेहास्पद हो
इस गली से उस गली की,
रक्तरंजित दीवारों पर लगे पोस्टर देख
पहचान कर ही लेता है बचपन,
हाँ,यहीं है,यही है
इस शहर में उसका घर!!
हाँ,हाँ! बचाना है यह शहर॥

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