अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
******************************************
बड़ा गुनाह
मिले ऐसी सजा
ना दें पनाह।
कैसा समय
तार-तार अस्मिता
तोड़ा सम्मान।
ये लोक-तंत्र!
बुरा विचार-आग
स्त्री कब तक?
ये कैसी हिंसा ?
लूट रहे अमन
भूले अहिंसा।
जरूरी न्याय
ना हो हैवानियत
ना हो अन्याय।
न करें निंदा
इंसाफ रखे जिंदा
माहौल ऐसा॥
मार दी शर्म
जल रहा मणिपुर
है राज-धर्म।
सब निःशब्द
हर मन में गुस्सा
हो झूठ बंद।
कैसी पशुता
हम हैं आधुनिक!
भीड़ कलंक।
सब शर्मिन्दा
मान लुटा देश का
हो न्याय जिन्दा॥