गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

मेरी माँ श्री श्री नाथजी की पूजा करती थी,इसलिए वे जन्माष्टमी के अलावा दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पर्व पर बालकृष्ण प्रभु को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग वाला कार्यक्रम अवश्य करती थीं। वे अन्नकूट पर्व की तैयारी दशहरे के बाद से ही पूरे घर की सफाई के साथ शुरू कर देती थीं। सफाई के बाद रोज घर पर ही मावा बनाना,फिर सबसे पहले पक्की चासनी की मिठाई बना कर सम्भाल कर रख देतीं थी। इसी क्रम में नमकीन में भी मठरी,शक्कर पारा वगैरह भी पहले कदम का हिस्सा होता था। मिठाई हो या नमकीन,छोटी दीपावली के दिन तक रात को देर तक जाग कर पूरी शुद्धता को ध्यान में रख तैयार करती रहती थीं जबकि वैष्णव धर्म के नियमानुसार पूरे कार्तिक माह में सुबह ४ से ४.३० बजे के बीच गंगा स्नान करने में भी कभी चूकती नहीं थी।
उनके छप्पन भोग वाली सूची,जो मेरे पास सम्भाल कर रखी हुई है,से स्पष्ट होता है कि सूची में ५० प्रकार के भोज्य पदार्थ(पकवान)के साथ ६ तरह के षटरस व्यंजन को समाहित किया हुया है-
भक्त या भर्त (भात),सूप (दाल),प्रलेह (चटनी),सदिका (कढ़ी),दधिशाकज्या (दही शाक की कढ़ी),सिखरिणी (सिखरन),अवलेह (शरबत),बालका (बाटी),इक्षु खेरिणी (मुरब्बा) तथा त्रिकोण शरा (शर्करा युक्त) आदि।
सूची से आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि मेरी माताजी अपने इष्ट के प्रति कितनी समर्पित रही हैं और कितनी लगन व मेहनत कर यह अन्नकूट महोत्सव मनाती थीं।
मेरा तो यही मानना है कि उनके द्वारा किए सद्कर्म ही हमारी आज सब तरह से रक्षा कर रहे हैं। एक और उल्लेख कि उन्होंने ही मेरी अर्धांगिनी को भी ये संस्कार दे दिए थे,जिसके चलते मेरी अर्धांगिनी ने न केवल अपनी पुत्रवधुओं को यह संस्कार दिए, बल्कि आज भी मेरी पुत्रवधुएं अपनी सास व दादीसास की तरह सूची की पालना का पूरा प्रयत्न करती हैं।
मेरा सौभाग्य है कि हमारे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी दीपावली बाद अन्नकूट महोत्सव जिस उद्देश्य को ध्यान में रख मनाया जाता आ रहा है,उसके बारे में अभी से मेरी पुत्रवधुएं पोतियों व पोते को समझाती रहती हैं कि,सनातन धर्म की वैष्णव परम्परानुसार (मान्यतानुसार) अन्नकूट को मनाने से व्यक्ति को आशीर्वाद तो मिलता ही है,साथ ही देवी अन्नपूर्णा की परिवार पर कृपा हो जाने से भोजन की कमी का सामना कभी भी नहीं करना पड़ता है इसलिए हमें इस पर्व को पूरी शुद्धता व श्रद्धा भाव के साथ प्रेमपूर्वक मनाना चाहिए।