इंदौर (मप्र)।
बाल साहित्य रचते समय आपके सामने भी बच्चा होना चाहिए एवं आपके भीतर भी बच्चा होना चाहिए और इन दोनों के बीच सामंजस्य बैठाकर पूरी तर्क शक्ति के साथ बाल साहित्य रचें। कठिन लिखना सरल है किंतु, सरल लिखना अत्यंत ही कठिन। जब हम बाल साहित्य रचते हैं तो हमें उसके लिए भी एक प्लॉट तैयार करने की आवश्यकता होती है।
माता जीजाबाई शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय में मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन परियोजना के अंतर्गत रचनात्मक लेखन
कार्यशाला के चौथे दिन बाल साहित्य एवं ललित निबंध दोनों ही विधाओं के महारथी मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने बाल साहित्य के बारे में बहुत ही बारीकी से यह बात कही। जब वक्तव्य का समापन कछुए और खरगोश की कहानी का एक नए अंदाज में नए संदेश के साथ किया तो सभागार तालियों से गुंजित हो रहा था।
तत्पश्चात ललित निबंधकार डॉ. गरिमा संजय दुबे ने कहा कि, जिस प्रकार व्यंजन बनाते समय हमें मसालों की मात्रा का मूल्यांकन करना होता है, उसी प्रकार लेखन में भी छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखना चाहिए। किसी भी विधा में लेखन हो, उसकी गहराई को समझे बिना हमें उस विधा में नहीं उतरना चाहिए।
कार्यशाला में वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. वंदना अग्निहोत्री सहित विभाग के सभी प्राध्यापकों तथा विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।