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बेपनाह मुह़ब्बत है आपसे

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) 
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यह ‘बात झूठ है के अ़दावत है आपसे।
हमको तो बेपनाह ‘मुह़ब्बत है आपसे।

हम आपकी ख़ुशी में ही ख़ुश हैं जनाबेमन,
किसने कहा के कोई शिकायत है आपसे।

दिल चीज़ क्या है जाने चमन जान की क़सम,
ग़ज़लों ‘को भी हमारी ‘इज़ाफ़त है आपसे।

नख़वत हो नसतरन की’ के नकहत गुलाब की,
हर चीज़ इस ‘चमन की सलामत है आपसे।

मौजूद’ आप हैं तो ‘हर इक शय है दिल नशीं,
घर’ यह हमारा प्यार की जन्नत है ‘आपसे।

बिन आपके तो कुछ भी नहीं है यहाँ सनम,
आबाद क़ल्ब की यह इमारत है आपसे।

रस्ते को हमने, आपके मसकन ‘बना लिया,
किस ‘दर्जा हमको देखिए’ उल्फ़त है आपसे।

बिन आपके कहाँ है वक़ार ए-फ़राज़ कुछ,
ह़ासिल जहाँ ‘में हमको सआ़दत है आपसे॥

(इक दृष्टि यहां भी:इज़ाफ़त-निस्बत ; नख़बत-ग़ुरूर; नसतरन-एक फूल; नकहत-ख़ुश्बू ;शय-चीज़;मसकन-घर; सआ़दत-खुशनसीबी)

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