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बढ़ता प्रदूषण,बढ़ता संकट

रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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आज के आधुनिक युग में जैसे-जैसे लोगों की जरुरत बढ़ती जा रही है,वैसे-वैसे ही पर्यावरण पर लोगों की आकांक्षाओं का भार भी बढ़ता जा रहा है। नित नई सुख-सुविधाओं की चाहत में लोग उत्पादन साम्रग्री के दुष्प्रभाव से अनजान होकर उभोक्ता की भूमिका में पर्यावरण को संकट ग्रस्त कर रहे हैं।
आज ऐशो-आराम के लिए लोग बड़ी मात्रा में ‘एसी’ का उपयोग कर रहे हैं,पर उससे निकलने वाली गैस ओजोन परत को नुकसान पहुँचाती है। ओजोन परत सूर्य की विषैली किरणों से हमारी सुरक्षा करती है। ओजोन परत को फ्रिज की गैस और सेंट के तत्वों से भी नुकसान होता है।
पर्यावरण को विशेष नुकसान वाहनों से निकलने वाले धुएँ से होता है। वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर बुजुर्गों और बच्चों पर पड़ता है। इससे दमा, घुटन,मानसिक तनाव व टी.बी. आदि रोग हो जाते है।
खतरनाक रसायनों,कल-कारखानों से निकलने वाले जहरीले पदार्थ से जल प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पैदा हो गई है,जिससे पेचिस,कालरा,हैजा, मलेरिया व डेंगू आदि बीमारी पैर पसार रही है।
इसी प्रकार शहरों के वाहन और धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण की समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है।
दिन-ब-दिन आदमी की आवश्यकता बढ़ती ही जा रही है। हमें एसी,फ्रिज के इस्तेमाल से बचते हुए कूलर और मिट्टी के घड़े के इस्तेमाल पर प्रोत्साहन देना होगा।
अब बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार ने सौर ऊर्जा चलित वाहनों को प्रोत्साहन दिया है। इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए उच्चतम न्यायालय ने लाउडस्पीकर पर रात १० से सुबह ५ बजे तक की रोक लगाई है। फिर भी जनसंख्या के हिसाब से आवश्यकता बढ़ेगी। इसलिए बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाकर हम प्रदूषण की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, क्योंकि जनसंख्या के हिसाब से आवश्यकता बढ़ती ही है,जो संसाधनों पर लगाम नहीं लगा पाती। इससे प्रदूषण की समस्या बढ़ती है।

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