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नया सवेरा

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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(रचना शिल्प:मात्रा भार १६+१६ हर पंक्ति)

जिस दिन बिटिया घर आएगी,उस दिन नया सवेरा होगा,
गोद में आकर मुस्काएगी,उस दिन नया सवेरा होगा।

नया-नया अरुणोदय होगा,आँगन में रंगोली होगी,
घर भर में खुशियाँ छायेंगी,उस दिन नया सवेरा होगा।

खिला-खिला सा मौसम होगा,महक रही होगी फुलवारी,
अमुआ पर कोयल गायेगी,उस दिन नया सवेरा होगा।

ठुमक-ठुमक कर चाल चलेगी,बाल सुलभ लीलाएं करती,
पायलिया जब छनकाएगी,उस दिन नया सवेरा होगा।

मम्मी की वो राजदुलारी,पापा की प्राणों से प्यारी,
महकेगी घर की फुलवारी,उस दिन नया सवेरा होगा।

पढ़-लिख नाम कमाएगी वो,दुनिया को दिखलाएगी वो,
बेटी का दम दिखलाएगी,उस दिन नया सवेरा होगा।

ब्याह पिया के घर जाएगी,दुनिया नयी बसाएगी वो,
हमको बहुत रुलाएगी वो,उस दिन घना अँधेरा होगाll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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