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भज रे मन परमात्म को

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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भज रे मन परमात्म को,करो आत्म सम्मान।
अजर अमर शाश्वत समझ,देह आत्म अवदान॥

परमात्मा लघुरूप तनु,आत्मा जग आधार।
आत्म रूप जीवन जगत,समझ ब्रह्म उपहार॥

मत भटको तुम स्वार्थ में,मन दुर्गम अवरोध।
तजो लोभ मन छल कपट,विरत शोक तज क्रोध॥

अतिचंचल मानस कठिन,वश होता संसार।
तज भौतिक अभ्यास नित,कर्मयोग आचार॥

मनुज जन्म वरदान है,ज्ञान कर्म संयोग।
नीति विरत सत्कार्य पथ,करता मन मद भोग॥

स्वाभिमान रक्षण स्वयं,बढ़े सुयश सम्मान।
हर्षित मन जीवन मनुज,निर्भर खु़द इन्सान॥

आशा मन अतिरेक बन,चाहत बिना प्रयास।
करे याचना पद विभव,दीन-हीन आभास॥

मन सुन्दर जग चारुतम,अंबर मुक्त उड़ान।
सत्य न्याय पथ त्याग बल,संजीवन वरदान॥

रखो मनोबल धैर्य को,रहो संयमित ध्येय।
साहस रख विश्वास ख़ुद,रिद्धि सिद्धि यश गेय॥

निन्दक नित प्रेरक पथी,मन का कर अवरोध।
चल पौरुष पथ सच रथी,सद्विचार नवशोध॥

कर्मवीर सत्पथ अटल,विनत प्रकृति मृदुभाष।
मति विवेक वश मन करो,पूर्ण सुयशअभिलाष॥

मन देशभक्ति हिय प्रेम हो,इच्छा मन बलिदान।
नव प्रभात अरुणिम किरण,सुखद शान्ति वरदान॥

आदर मन जनतंत्र का,दया क्षमा मन भाव।
शरणागत रक्षक बने,मिटे प्रीति से घाव॥

कर्म योग से मन वशी,परमारथ पुरुषार्थ।
रोग शोक खल मोह मन,मिटे पथिक धर्मार्थ॥

दूर करें घन तिमिर मन,भरें ज्ञान आलोक।
गंगा सम निर्मल हृदय,मिटे लोभ छल कोप॥

भव्य मनोरम चारु मन,सत्यपूत हो कर्म।
विजय गीत गुंजित जगत,स्नेह सिक्त हो धर्म॥

मन सद्भावित हो सरस,अपर खुशी लखि हर्ष।
कोमल किसलय मधुरतम,धवल कीर्ति उत्कर्ष॥

आदि ब्रह्म परमात्म है,महिमा ईश अनन्त।
अमर मात्र जीवात्म जग,तन मन धन हो अन्त॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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