दिल्ली
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संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा भारत सहित पूरे विश्व में भूख, कुपोषण एवं बाल स्वास्थ्य पर समय-समय पर चिंता व्यक्त की गई है। यह चिन्ताजनक स्थिति विश्व का कड़वा सच है, लेकिन शर्मनाक सच भी है और इससे उबरना जरूरी है। कुपोषण और भुखमरी से जुड़े वैश्विक प्रतिवेदन न केवल चौंकाने, बल्कि सरकारों की नाकामी को उजागर करने वाले ही होते हैं। इस विवशता को कब तक ढोते रहेंगे और कब तक दुनिया भर में कुपोषितों का आँकड़ा बढ़ता रहेगा, यह गंभीर एवं चिन्ताजनक स्थिति है। ज्यादा चिंताजनक यह है कि, तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कुपोषितों और भुखमरी का सामना करने वालों का आँकड़ा हर बार बढ़ा हुआ ही निकलता है। इन स्थितियों के बीच भारत में इस गंभीर स्थिति पर नियंत्रण पाने की दिशा में सरकार ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। भारत सरकार पोषणयुक्त आहार एवं कुपोषणमुक्त भारत के संकल्प को आकार देने में जुटी है, आजादी के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता पाई है, जो समस्या से मुक्ति की दिशा में सरकार के संकल्प का उजाला है। हालाँकि, उनके वित्तपोषण और कार्यान्वयन में अभी भी अंतराल मौजूद है। इस मुद्दे को समग्र रूप से संबोधित करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है। कुपोषण की स्थिति तब विकसित होती है, जब शरीर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों से वंचित हो जाता है। भारत सरकार ने वर्ष २०२२ तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन अभियान शुरू किया था, जिसमें बड़ी सफलता मिली है। एनीमिया मुक्त भारत अभियान वर्ष २०१८ में शुरू किया गया। उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को १-३ प्रतिशत अंक तक कम करना है। मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य शालेय बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका नामांकन और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ऐसे ही समेकित बाल विकास सेवा योजना का उद्देश्य ६ वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व शालेय शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है। इन सब योजनाओं का असर कुपोषण को नियंत्रित करने पर पड़ रहा है।
अंतरिम बजट २०२४-२५ में केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि, अमृत काल के दौरान समावेशी विकास के लिए, बेहतर पोषण वितरण, प्रारंभिक बचपन की देखभाल और समग्र विकास में तेजी लाने के लिए एक ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। ‘विजन इंडिया २०४७’ के प्रयासों को पूरा करने के लिए भूख को कम करने और कुपोषण मुक्त राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से कार्यक्रमों को आकल्पित करने और लागू करने की दिशा में काम कर रहा है। एक बहुआयामी रणनीति के तहत ‘फीडिंग इंडिया’ एक ऐसे भारत के लिए प्रतिबद्ध है जो आर्थिक रूप से सम्पन्न हो। नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं को आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करे और जो कुपोषण मुक्त हो।
असल में भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में हर इलाके की खास जरूरतों के हिसाब से अलग व्यवस्था की दरकार है, न कि सब जगह एक ही पैमाने पर बने कार्यक्रम को लागू करना। पिछले कई बरस से यही तरीका अपनाया जाता रहा है। देश से कुपोषण की समस्या जड़ से खत्म करने के लिए नए सिरे से हो रहे प्रयास ३ अहम बातों पर आधारित हैं-बर्ताव में बदलाव, संक्रमण रोकने का प्रबंधन और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले कुपोषण के चक्र को तोड़ना।
यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि, कुपोषण के साथ भारत अधिक वजन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी नई चुनौतियों का भी सामना कर रहा है, जिसे पोषण संबंधी गैर-संचारी रोग भी कहा जाता है। हर ५ में से १ महिला और हर ७ में से १ भारतीय पुरुष आज बढ़ते वजन से पीड़ित हैं। शहरी क्षेत्र में दिनों-दिन यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास उसकी आहार तालिका पर भी निर्भर करता है। हकीकत ये है कि, ज्यादातर माताएं संतुलित आहार जानती तक नहीं।
ग्रामीण क्षेत्रों व मलिन बस्तियों के बच्चों को उचित भोजन नहीं मिल पाता, नतीजतन वे कम वजन व लंबाई और बार-बार बीमारी से जूझते हैं। कई बार कुपोषण की चपेट में भी आ जाते हैं। बढ़ते बच्चों का आहार तालिका के अनुसार खान-पान जरूरी है।
भारत सरकार एवं वैज्ञानिकों के प्रयास निःसंदेह सराहनीय हैं कि, आर्थिक संकट में भी सस्ता टीका उपलब्ध कराने के सभी प्रयास जारी हैं। केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी कर अपने नागरिकों को सस्ता एवं स्वच्छ उपचार उपलब्ध करा सके तो कुपोषण, भूखमरी एवं बीमारियों से निजात मिल सकेगा। कुपोषण एवं भूखमरी से मुक्ति के लिए भी सरकारोें को जागरूक होना होगा।