डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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लहू बनाम जिन्दगी…..
लहू बगैर ये जीवन यहां,
पलभर भी मुमकिन नहीं
लहू दौड़ रहा रग-रग में,
नहीं तो ये, जीवन नहीं।
कभी ऐसा भी दुखद मंजर,
सामने तो आया होगा
लहू के लिए बेबस हो मन,
बहुत ही छटपटाया होगा।
उस वक्त कीमत लहू की,
समझ में तो आई होगी
जिन्दगी सामने से जब,
सरकती नजर आई होगी।
आँखों के सामने अन्धेरा,
सा भी तो छाया होगा
अपनों का साथ छूटता,
जब नजर आया होगा।
लहू देने के लिए कोई,
इन्सान जो मिला होगा
तो उसमें तुझे अपना,
ईश नजर आया होगा।
सौ दुआएँ तेरे लबों से,
उसके लिए निकली होंगी
खुशी से चेहरा खिला और,
आँखें भी छलकी होगी।
दिल दुखे ना किसी का,
लुटे ना दुनिया किसी की।
रक्तदान कर, समझ महादान,
सँवर जाए जिन्दगी किसी की॥