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माँ ही ईश्वर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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माँ अनमोल रिश्ता (मातृ दिवस विशेष) …

तू ही जननी तू ही पालक,
तुमको शीश नवाऊँ मैं
तेरी चरण शरण पाकर के,
जीवन के सुख पाऊँ मैं।

तेरा हाथ सदा सिर पर हो,
अभयदान पा जाऊँ मैं
तेरी सेवा में रत रह कर,
शत् आशीषें पाऊँ मैं।

मांस पिण्ड था सिर्फ एक,
तुमने ही तो आकार दिया
मुझको दुनिया में लाई औ,
एक नया संसार दिया।

लालन-पालन करने में माँ,
अपने सारे दु:ख भूल गयी
मुझ पर आए न आँच कोई,
बस ये ही बातें याद रही।

तेरे आँचल की छाँव तले,
मैंने जो अमृत पान किया
उस पय का कर्ज मेरी मैया,
जीवन भर चुका सकूंगा क्या!

इस दुनिया में जीने का माँ,
तुमने ही ढंग सिखाया है
सब संस्कार भर के तुमने,
जीवन का पाठ पढ़ाया है।

माता तू रूप है ईश्वर का,
मैंने तुमको पहचान लिया
श्वाँसों का दान मुझे देकर,
तुमने कितना उपकार किया।

माँ तुझसे बड़ा नहीं कोई,
इस जीवन का आधार हो तुम
है स्वर्ग नहीं तुमसे ऊँचा
मेरा सारा संसार हो तुम।

उस दिन से लेकर आज तलक,
मैं प्यार तुम्हारा पाता हूँ
दुनिया के इस कंटक पथ पर,
मैं आगे बढ़ता जाता हूँ।

मुझको तू छोड़ नहीं जाना,
मैं एकाकी रह जाऊँगा
दुनिया सूनी हो जाएगी,
इक पल भी रह नहीं पाऊँगा।

कुछ और नहीं चाहत मेरी,
बस तू जीवनभर साथ रहे।
मैं तेरी चरण रज को चूमूँ,
सिर आशीषों का हाथ रहे॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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