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मैं,वो और बैंक:सख्ती-सजा जरुरी

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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मैं,अर्थात आप ही की तरह साधारण जन, ग्राहक,उपभोक्ता तथा बैंक का सामान्य कर्मचारी व मध्यम स्तर तक का अधिकारी, जिसे अपनी ईमानदारी से कर्तव्य पालन करते हुए परिवार का भरण-पोषण करना है। ग्राहक व ये कर्मचारी अपनी पूंजी की सुरक्षा व ऋण ले कर जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की आंकाक्षा को ले कर सदा-सर्वदा मिल कर सौहार्दपूर्ण काम करते रहे हैं। ये बैंक, राष्ट्र,समाज के हित में सोचते हैं,ये बैंक की प्रगति में साझेदार हैं,गर बैंक डूबता है,तो ये किसी भी रुप में जिम्मेदार नहीं हैं। इसके जिम्मेदार हैं वो,अर्थात बड़े-बड़े करोड़ों,अरबों -खरबों की सम्पत्ति के मालिक,जो बैंक के उच्च पदाधिकारियों को लुभा कर विशाल योजनाओं(प्रोजेक्ट)के लिए विशाल स्तर पर ऋण ले लेते हैं। मिली-भगत से मिला ये ऋण मिल-जुल कर ही डकार जाते हैं। चाहे शासन किसी भी दल का रहा हो,इनकी हमेशा पौ-बारह रहती है।
पिछले दिनों कई बैंक धराशाई हुए,अभी इसी सप्ताह ‘यस’ बैंक के धड़ाम होने से हड़कम्प मच गया। साख बचाने के नाम पर रिज़र्व बैंक स्टेट बैंक को साथ ले आया। १६ वर्ष पहले ही अस्तित्व में आए इस बैंक का ११००० करोड़ रुपए का एनपीए है। भाजपा सरकार को २०१७ में ही पता चल गया था कि देश के सबसे चौथे बड़े निजी बैंक की हालत खराब है। ६३५५ करोड़ रुपए का एनपीए रिज़र्व बैंक से छुपाया गया। डीएचएफ़एल,आई एल एंड एफ़ एस,अनिल अंबानी समूह को दिए ऋण पूरी तरह डूब गए,खुद को दिवालिया घोषित करा दिया। ६०० करोड़ रुपए बैंक के मालिक,सीईओ राणा कपूर अपनी पत्नी व बेटियों की कम्पनियों के नाम पर डकार गए। बैंक बचाने के नाम पर ५००० करोड़ रुपए कम ब्याज पर रिज़र्व बैंक दे रहा है और २४५९ करोड़ स्टेट बैंक निवेश कर रहा है,यह सब अपनी भूल छुपाने व ग्राहकों का विश्वास बरकरार रखने के नाम पर किया जा रहा है। विजय माल्या सरकारी बैंकों के ९००० करोड़ तो नीरव मोदी मामा सहित १४००० करोड़ ले कर चम्पत हो गए। उन्हीं दिनों कुछ और कम्पनियों के नाम भी ५००० करोड़ डकार जाने का जिक्र हुआ था। ये सब हड़पा हुआ धन सब लाखों करोड़ों भारतीयों के कर का
ही तो है। ढाई लाख करोड़ से ऊपर का एनपीए है सब बैंकों का,आखिर हमारे दर्द को कौन समझेगा ? केन्द्र सरकार कब तक कांग्रेस को रोती रहेगी। माल्या,नीरव आपके राज में भागे हैं। ‘यस’ बैंक आपकी जानकारी में होते हुए एकाएक ‘नो’ हो गया। ऊपर से वित्तमंत्री कहती हैं कि बैंक कर्मचारियों का व्यवहार जनता के साथ ठीक नहीं है,२९ माह हो गए बैंककर्मियों का वेतन समझौता नहीं हो पाया है। यही बैंक कर्मचारी नोटबन्दी के समय बैंक वीर थे,अब तुम्हारी आँखों के शहतीर हो गए। केन्द्रीय व बैंककर्मियों के वेतन में आधे से कुछ कम का अंतर है। बैंक क्लर्क का आरम्भिक वेतन २२००० तो
केन्द्र में ३६००० है। कभी केन्द्र सरकार की नौकरी छोड़ कर बैंक को तरजीह देते थे,पर अब हालात अलग हैं। १९८३ में केन्द्र सरकार की नौकरी छोड़ बैंक में आया था। ३ साल पहले सेवानिवृत्त होने तक वेतन केन्द्रीय कर्मी के आधे से थोड़ा-सा अधिक था,पेंशन भी अब से डेढ़ गुणा होती।
बैंककर्मियों पर काम का दबाव है,अमला आधे से भी कम है,बिना कुछ अतिरिक्त मिले रोज दो-ढाई घंटे देरी तक समय देना पड़ता है। न पूरे हो सकने वाले लक्ष्य दिये जाते हैं, हर सरकारी योजना को बैंककर्मियों पर लाद दिया जाता है।
प्रधानमंत्री,जिन २२ करोड़ जन-धन खातों का देश-विदेश में महा गुणगान कर दोबारा सत्ता में आए,उसके लिए बैंककर्मियों की अथक मेहनत थी। आपकी ‘नोटबन्दी’ में आधी रात तक काम करते रहे। अरुण जेटली (दिवंगत)ने स्वयं आगे बढ़ कर समय पर बैंक समझौता करने को कहा था,पर २९ माह बीत गए। बेचारे बैंककर्मी हताश,निराश,चिड़-चिड़े नहीं होंगे तो और क्या होगा,ऊपर से काम का दबाव,दबाव दे कर ऋण दिलवाना,डूब जाने पर फिर उसे ही उत्तरदायी ठहराना,कुंठित व लाचार बना देता है।
यदि आज पहले की तरह बैंकों में ‘गोल्डन शेक’ योजना फिर ले आएं तो उसके दायरे में आने वाले ९५ प्रतिशत कर्मचारी उसे स्वीकार कर लेंगें,क्योंकि आज बैंककर्मी त्रस्त है। बैंक डूबने की इन घटनाओं ने आम बैंककर्मी की छवि को छिन्न-भिन्न कर दिया है। बड़े-बड़े घोटाले सरकार की शह पर बैंकों के आला जिम्मेदार करते रहे। लाखों-करोड़ों रुपए कुछ सैंकड़ों-करोड़ों में ‘राइट ऑफ’ के नाम पर कुर्बान हो गए। अब १० बैंक की जगह ४ कर दोगे तो क्या सूरत बदल जाएगी! पहले सीरत बदलो ऊपर वालों,नहीं तो नीचे कल एक और बैंक के नाकामयाब होने की खबर आ जाएगी।
अब समय आ गया है,देर बहुत अधिक हो चुकी है। बैंककर्मियों के सब्र का इम्तिहान न लेते हुए जल्द समझौता हो,बैंकिंग सिस्टम में परिवर्तन हो। हर हालत में पहले उच्च पदाधिकारियों की जवाबदेही हो,आखिर उनके ही आदेश पर निचले स्तर के अधिकारियों को ऋण देने पड़ते हैं। एक चिकित्सक से गलती हो जाए तो मरीज़ भुगतता है,पुल निर्माण में कुछ कमी रह जाए तो लोग मरते या घायल होते हैं,पर बैंक अधिकारियों द्वारा स्वीकृत ऋण बड़े-बड़े उद्योगपति हड़प जाएं तो सारा दोष इन्हीं पर …। यदि बैंकिग प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन न किए गए तो हालात बदतर होते चले जाएंगे। सुचारू बैंकिंग व्यवस्था ही राष्ट्र की रीढ़ है। जिन बैंककर्मियों के बल पर पूरी अर्थव्यवस्था टिकी है,तो उनका सम्मान-सभी भावनाओं को समझना बहुत जरूरी है। व्यथित हृदयों के बल पर ५ लाख ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कैसे बनेगी! सरकार व कर्मियों को मिल कर हर क्षेत्र में सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करने होंगे।बैंककर्मी हर रुप में संतुष्ट हों,सुदृढ़ बैंकिंग हो, रिज़र्व बैंक अपने निगरानी तन्त्र को मज़बूत करे और बिना भेदभाव के हर दोषी को कड़ी सजा मिले तो सही शुरुआत होगी। इससे आएगी उमंग से भरी नई बहार,यहीं से होगा ‘नए भारत’ का निर्माण,जहाँ सुख समृद्धि और खुशहाली की नई इबारत लिखी जाएगी।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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