पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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“मिसेज शर्मा, आज बेटी के जीवन के लिए इतना खास दिन था, उसको आज गोल्ड मेडल मिलने वाला था, तब भी आप अकेली ही आई हैं…?
मैंने मि. शर्मा को खास तौर से फोन करके आज आने के लिए इनवाइट भी किया था।”
पलभर के लिए वह रुआँसी हो उठी थी, लेकिन झट उसका मुखौटा उसके चेहरे पर चिपक गया था। वह मीठे स्वर में बोली, “मैम, वह तो यहीं पर आ रहे थे कि अचानक उनके बॉस का फोन आ गया। उन्होंने किसी अर्जेट मीटिंग के लिए बुला लिया।
आप तो अच्छी तरह से जानती ही हैं कि काम करने वाले आदमी को तो एक पल के लिए भी साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिल पाती।”
“कैसे-कैसे पैरेंट्स होते हैं… आज बेटी को गोल्ड मेडल मिला तो भी नहीं आए…?”
कावेरी ने तेजी से मुड़ कर अपनी आँखों के आँसू छिपा लिए थे। उसके कान में मैडम के शब्द रह– रह कर गूँज रहे थे।
शहर में माँ का घर था, परंतु मजाल है कि वह बिना अनुमति के माँ से मिलने भी चली जाए।
वह अपने में खोई हुई थी। आखिर वह कब तक मुखौटा लगा कर अपनी असलियत को ढकती रहेगी। २-३ दिन पहले ही तो वह बाजार से थैला हाथ में लेकर लौट रही थी, तभी मुग्धा भाभी और उनकी सहेली स्मिता उसे मिल गई थीं। स्मिता पूछने लगी, “क्यों जीजू तेरे साथ शॉपिंग पर नहीं जाया करते ?”
मुखौटा तेजी से चिपक कर बोला, “स्मिता, मैं ही उनके साथ नहीं जाती। वह मँहगी-मँहगी ड्रेस जबर्दस्ती खरीद कर दे देते हैं, फिजूलखर्ची तो उनसे सीखो।” वह मन ही मन रो रही थी, आखिर ये मुखौटा उसे कब तक बचाता रहेगा…?
उसने बेटी निया को खाना दिया और प्यार भरी नजरों से उसे खाते देख रही थी।
कावेरी को रह-रह कर अम्मा की हुड़क लग रही थी। अम्मा भी ऐसे ही प्यार से उसे बैठ कर खिलाया करती थीं।
उसने मोबाइल उठाया ही था, कि वह बज उठा…. ‘अम्मा’ का नाम देखते ही उसका मन खुश हो गया ।
“कावेरी, कैसी है तू…? आज तेरे भतीजे का जन्म दिन है… तूने विश भी नहीं किया… वह सुबह से तेरे फोन का इंतजार कर रहा है…।”
“ओह गॉड, मैं कैसे भूल गई…! सुबह तो याद था। बस किचन में लग गई, फिर एकदम ध्यान से उतर गया।”
कहाँ है बर्थ डे ब्वॉय ?”
“तुमसे नाराज है… शाम को छोटी- सी पार्टी है, सब लोग आना। जयेश जी हों तो बात करा दे…।”
जयेश ने इशारे से बात करने के लिए मना कर दिया, पर मुखौटा हाजिर हो गया…,”वह अभी ऑफिस में बिजी हैं, आजकल ऑडिट चल रहा है।”
वैसे वह झूठ नहीं बोलती, लेकिन इस समय झूठ बोलना ही बचाव के लिए ठीक था ।
“मैं और निया आ जाऊँगी।”
“+मेरा खाना बना कर रख जाना। मैं उस कबूतरखाने में नहीं जाऊँगा।”
वह अकेली गई, निया तो अपनी फ्रेंड्स के साथ जाना था।
पार्टी खत्म होते-होते रात के ११ बज गए तो अम्मा ने जबर्दस्ती करके रोक लिया था।
नवल भी “बुआ, बुआ रुक जाओ…” बार-बार मनुहार कर रहा था। वह रुक तो गई थी, लेकिन पति की नाराजगी सोच कर उसकी आँखों से नींद कोसों दूर भाग गई थी।
अम्मा के साथ वह उनके बेड पर लेटी हुईं थीं। वह सो जाने का अभिनय कर रही थी, परंतु अम्मा की अनुभवी नजरों से नहीं बच पाई थी।
“कावेरी नींद नहीं आ रही है क्या ? करवटें बदल रही हो…?” उसका दिल तो कर रहा था, कि माँ के कलेजे से लग कर फूट-फूट कर रो पड़े लेकिन मुखौटा तुरंत आकर चेहरे पर चिपक गया था।
“अम्मा तुम्हारे दामाद रात में कभी पिक्चर देखने बैठ जाते हैं, तो कभी लांग ड्राइव पर लेकर चल देते हैं इन्हीं सब वजहों से देर-सबेर सोना और जागना होने लगा है।”
अम्मा के चेहरे पर खुशी और संतुष्टि का भाव छा गया एवं वह गहरी नींद में सो गई थीं।
कावेरी पूरी रात यूँ ही करवटें बदलती रही और अपने मुखौटे को दूर से लेटी हुई गहरी नजरों से देख रही थी। उसकी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे। चेहरे से मुखौटा उतर कर दूर खड़ा था।
कावेरी पूरी रात यूँ ही आँसू बहाती रही और मुखौटे को दूर से गहरी साँसें लेकर नजरों से देखती रही थी…।