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मेरा देश महान है

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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गणतंत्र दिवस विशेष….

मेरे देश में स्वतंत्रता की…,
पहले एक भाषा थी,एक चिन्ह था।

प्रत्येक शहर व गाँव के,
गली-कूचों से
धूल उड़ाते हुए निकल जाती थी।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

तन पर फटे मैले कुचैले कपड़ों में,
भूख से बेहाल कंधों पर
इधर से उधर तक,
उफ़! किए बिना दौड़ लगाती थी।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

लेकिन अब,
यही स्वतंत्रता मेरे देश में
नित नए आविष्कारों के वाहनों में,
सूट-बूट पैंट पहन घूमती है
स्त्री-पुरुष के परिधानों में,
पाश्चात्य बन छलकती है।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

स्वतंत्रता अब,
देश की मिट्टी पर
काली कंक्रीट की सड़्कें बन बिछी रहती है,
जिधर देखो,यहाँ से वहाँ तक,
पिटी-पिटी न होकर सरपट दौड़ती रहती है।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

आज लोकतंत्र में,
किंतु-परंतु में
राजनीति कुछ अधिक न्यारी है,
अंग्रेज़ी सत्ता से विचरती भारी है।
मेरे देश में स्वतंत्रता की …!

आज स्वतंत्रता,
बिन पैंदे के लोटों के यहाँ
साँस लेने को मचलती है,
कुछ में दीवानों-सी
सिर-पैर अपना पटकती है।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

मेरे देश में,
स्वतंत्रता
प्रत्येक नागरिक की अपनी वस्तु है,
प्रत्येक के गले का बहुमूल्य आभूषण है
विचारों की लहर तरंगित हो,
कभी एक टाँग पर खड़े हो प्रवासी बन जाती है
मेरे देश में स्वतंत्रता की…

मगर,
देशभक्ति मेरे देश को महान बनाती है
सरहद पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाती है,
गर्व है मुझे हिंद के जवानों पर
माँ के लाड़लों पर,
बर्फ़ीले तूफ़ानों से भिड़ जाते हैं
कुछ पड़ोसी देश यदा-कदा जमाते हैं,
जवानों के साहस से उनके दाँत खट्टे हो जाते हैं।
मेरे देश में स्वतंत्रता की…
पहले एक भाषा थी,एक चिन्ह था।

मेरा देश की भूमि में विश्व से अलग आन है,
अभिमान से कहो! हम सबकी पहचान है॥

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