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मेरा भारत सबसे निराला

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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हमारे हिन्द की क्या बात ये सबसे निराला है,
यहाँ का पैरहन परिवेश भी दुनिया से आला है।

यहाँ सूरज भी सबसे पहले आकर डालता डेरा,
यहाँ पर पर्वतों की चोटियों ने देश को घेरा।
यहांँ दक्षिण में सागर भी पखारे पाँव भारत के,
यहाँ सब पौंछते आँसू शरण में आए आरत के।
मेरे भारत में सब धर्मों का रहता बोल-बाला है,
हमारे हिन्द की क्या…॥

निकल हिमवान से गंगा करे पावन वतन मेरा,
कई संतों-अखाड़ों का किनारों पर लगा डेरा।
यहाँ पर अल सुबह मंदिर में गूँजे शंख मनभावन,
नगाड़े झाँझ के संग लोग करते आरती पावन।
चले बम-बम की आवाजें यहां पावन शिवाला है,
हमारे हिन्द की क्या…॥

अजानें गूँजती मस्ज़िद इसाई चर्च जाते हैं,
सभी अपने खुदा को दर्द अपना जा सुनाते हैं।
यहाँ है गूँजती मधुबन में बाँसुरिया कन्हैया की,
मनोहर छवि हृदय बसती मेरे बंसी बजैया की।
रचाता रास बंसी बट हमारा नंद लाला है,
हमारे हिन्द की क्या…॥

निगेहबान देश के सैनिक सदा तैयार सीमा पर,
कोई दुश्मन नहीं डाले नजर इस देश भारत पर।
वो चीनी हो या हो पाकी हमेशा मुँह की खाएगा,
लगा जो हाथ शेरों के तो दोज़ख़ में ही जाएगा।
तिरंगा शान से दुनिया पर लहराने ही वाला है,
हमारे देश की क्या…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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