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हिंदी के बढ़ते चरण

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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हिंदी का यशगान हो,हिंदी का सम्मान। हिंदी का गुणगान हो,हिंदी का उत्थानll
१४ सितम्बर १९४९ को संविधान सभा ने एकमत से हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया और सन १९५० में सविधान के अनुच्छेद ३४३ (१) द्वारा हिंदी की देवनागरी लिपि को राजभाषा का दर्जा दिया गयाl हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सन १९५३ से १४ सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा |
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करने और हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए विश्व हिंदी सम्मलेन जैसे समारोह की शुरुआत की गयीl १० जनवरी १९७५ को नागपुर से शुरू हुआ यह सफ़र आज भी जारी हैl अब इस दिवस को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैl हिंदी का प्रचार- प्रसार और लोकप्रियता पूरे विश्व में इस कदर है कि,हिंदी भाषा आज भारत ही नहीं,पूरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र और जनसमूह की भाषा हैl १९५२ में हिंदी भाषा प्रयोग होने वाली भाषाओं में पाँचवें स्थान पर थीl १९८० के आस-पास वह चीनी व अंग्रेजी के बाद तीसरे स्थान पर आ गयीl १९९९ में पाया गया कि हिंदी बोलने वालों की संख्या पूरे विश्व में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या से अधिक है,जो मध्यम वर्ग के लोगों में फैली हैl इन मध्यम लोगों की भी आज विश्व में भागीदारी बढ़ी है,जिससे अपने माल के प्रचार-प्रसार,गुणवत्ता आदि के लिए हिंदी भाषा को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता है और उनकी यही विवशता आज हिंदी के प्रचार-प्रसार और लोकप्रिय होने की शक्ति बन गयी हैl
१९९० में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत आई,जो अंग्रेजी भाषा लेकर आईl मीडिया में चैनल अंग्रेजी भाषा में अपने कार्यक्रम ले आए,लेकिन इन्हें भी अपने दर्शक बढ़ाने व मुनाफा कमाने के लिए हिंदी की तरफ मुड़ना पड़ाl आज टी.वी. चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिंदी सबसे अधिक मुनाफे की भाषा हैl
आज हिंदी की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी है कि,४० से अधिक देशों के ६०० से अधिक विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में पढ़ाई जा रही हैl मारीशस में १९५० से ही हिंदी पढ़ाई जाती है,तो फिजी में शिक्षा विभाग द्वारा संचालित सभी बाह्य परीक्षा में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती हैl श्रीलंका में भी हिंदी पढ़ाई जाती हैl ब्रिटेन,कैम्ब्रिज तथा न्यूयार्क के विश्वविद्यालय,अमेरिका के येन विश्वविद्यालय में भी हिंदी की व्यवस्था हैl यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्ट इन्डीस में हिंदी पीठ स्थापित हैl गुयाना के विश्वविद्यालयों में बी.ए. स्तर तक हिंदी का पठन-पाठन होता हैl फ्रांस,इटली,स्वीडन,आस्ट्रिया,डेनमार्क,जर्मन , रोमानिया इत्यादी देशो में हिंदी अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हैl
विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिका लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित होती हैl यूएइ सहित अनेक देशों में हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित होते
हैंl हिंदी का प्रसार,लोकप्रियता जिस तरह से बढ़ी है,उसी के कारण आज हिंदी विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोलने वाली भाषा बन गयी हैl आशा है कि बहुत शीघ्र ही यह विश्व भाषा के रूप में उभरेगीl
हिंदी तो अब बन गई,जैसे हो आदित्य। प्रचलन बढ़ता जा रहा,सम्मानित साहित्यll

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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