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मैं जायदाद क्यूँ…?

ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)

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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)….

हम नदी के दो किनारे हैं,
जब चलना साथ है
तो इतना आघात क्यूँ,
तुम तुम हो तो
मैं मैं क्यूँ नहीं,
मैं धरा हूँ तो
तुम गगन क्यूँ नहीं,
मैं बनी उल्लास तो
तुम विलास क्यूँ,
मैं परछाईं हूँ तुम्हारी,
फिर अकेली क्यूँ ?

तुम एक शख्सियत हो,
तो मैं मिल्कियत क्यूँ
तुम एक व्यक्ति हो तो,
मैं एक वस्तु क्यूँ
तुम्हारी गरिमा की वजह हूँ मैं,
फिर इतना अहम क्यूँ
तुम मेरी कायनात हो तो,
मैं जायदाद क्यूँ ?

मैं धुरी हूँ तो,
तुम आधार बन जाओ
मैं सृष्टि हूँ तो,
तुम वृष्टि बन जाओ
मैं रचना हूँ तो,
तुम संरचना बन जाओ
फिर देखो,
पतझड भी रिमझिम करेंगे
और बसन्त बौराएगी,
संघर्ष की फ्थरीली राह भी
मख़मली हो जाएगी।
नई भोर की अग॒वानी में,
संध्या भी गुनगुनाएगी
संध्या भी गुनगुनाएगी॥

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