ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)
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पितृ पक्ष विशेष….
सब कहते हैं
वो चले गए,
वो मिलते मुझे अकेले में
जो चिपके मन के कोनों में
वो रहते पिछले पन्नों में,
हर मोड़ पर मुझको
उनकी याद सताती है,
जो चले गए।
पिछले पन्ने खुल जाते हैं
पाई हर आहट से,
वो वाकिफ़ मेरी आदत से
जो भी हूँ,उनके खातिर हूँ,
क्या उनने ना जुटाया
उम्र सारी प्यार लुटाया,
जो जीवन का हिस्सा था
आज वो पिछला किस्सा हैं
जब-जब मन में,
रह रह कर,टीसें चलती हैं
मेरे दर्द का दरिया बहता है,
चुपके-चुपके कहता है
किसे सुनाऊँ,
किसे दिखाऊँ
सब कहते हैं,
वो चले गए।
वह मिलते मुझे अकेले में
उनसे जो कह ना सकी,
उनके खातिर
जो कर न सकी,
मन ही मन नित मरती हूँ
श्राद्धों में मन थका-थका,
वक्त के हाथों ठगा-ठगा
हूक उठती है,
यदा-कदा
उनकी याद सताती है,
जो चले गए।
उनकी बात रुलाती है
जो चले गए,
आँखें भर भर आती हैं
क्यों चले गए।
सब कहते हैं-
वो चले गए,
वह नित मिलते
मुझे अकेले में॥