शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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आघात बहुत सहता आया अब और नहीं बस और नहीं।
मैं भारत हूँ अब कहता हूँ दुश्मन को कोई ठोर नहीं॥
उत्तर में पर्वतराज हिमालय करता मेरी रखवाली,
जैसे बगिया की रखवाली करता है बगिया का माली।
सक्षम हैं हर सैनिक मेरा मैं किसी तरह कमज़ोर नहीं।
मैं भारत हूँ अब कहता हूँ दुश्मन को कोई ठोर नहीं…॥
है तीनों ओर भरे दरिया दुश्मन रख सकता पाँव नहीं,
सैनिक सन्नध सब सीमा पर बैरी की खातिर ठाँव नहीं।
हम घात लगा कर मारेंगे होगा कोई भी शोर नहीं,
मैं भारत हूँ अब कहता हूँ दुश्मन को कोई ठोर नहीं…॥
मैं सर्वधर्म का पायक हूँ सबको मिलता सम्मान यहाँ,
तुलसी रसखान कबीर मीर नानक से हुए महान जहाँ।
जँह राम कृष्ण अरु बुद्ध सरीखा जन्मा कोई और नहीं,
मैं भारत हूँ अब कहता हूँ दुश्मन को कोई ठोर नहीं…॥
कितना हमने था समझाया पर चीन नहीं माना तब भी,
मुँह की खायेगा सदा यहाँ लड़ने को आयेगा जब भी।
वो समझा नहीं मुझे अब तक मुझ जैसा मिला कठोर नहीं,
मैं भारत हूँ अब कहता हूँ दुश्मन को कोई ठोर नहीं…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है