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मोक्ष स्वयं में ही पाएंगे

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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बड़े-बड़े सुनहरे ख्वाब,
और छोटी-सी ये ज़िन्दगी
जैसे वह भी एक ख्वाब हो,
न जाने कब कौन हमें जगा दे।

हमारी नींद कब टूटे,
और सामने हो अंतिम सत्य
हो इतना सशक्त कि,
तोड़ डाले सारे भ्रम
सारे निश्चित कर्म,
जो ले जाये हमें बहुत दूर।

जहाँ न कोई बँधन हो,
न हो कोई दस्तूर
बस शून्य में व्याप्त हो,
एक अमिट शांति
वो शांति जो चिरस्थायी
सम्पूर्ण होती है,
और सत्य की तलाश
जहाँ पूर्ण होती है।

इस सत्य को अगर हम,
अभी समझ जाएंगे
जीवन हर बँधन से
मुक्त हो, जी पाएंगे।
जीव मोक्ष के लिए,
भटकते हैं दर-दर
वो मोक्ष स्वयं में ही पाएंगे॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”


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