वाराणसी (उप्र)।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन में अंग्रेज़ी हटाओ आंदोलन की पृष्ठभूमि पर लिखे गए उपन्यास ‘मोर्चेबन्दी’ (लेखक प्रो. सुरेंद्र प्रताप) का विमोचन एवं विमर्श आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य एवं बीएचयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मोहन प्रकाश रहे।
आयोजन में देश की राजनीति में छात्रसंघों की भूमिका, भारतीय भाषाओं के महत्व और लोकतंत्र की वर्तमान चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई। अतिथि ने १९६७-६८ के अंग्रेज़ी हटाओ आंदोलन की याद ताज़ा करते हुए कहा कि उस समय उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के अनेक प्रतिभावान छात्र अंग्रेज़ी की अनिवार्यता से परीक्षाओं में पिछड़ जाते थे। उनका आक्रोश ही इस आंदोलन का स्वरूप बना। उन्होंने पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी पुस्तकों और लेखन सामग्री पर लगाई गई जीएसटी को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसके खिलाफ लामबंद होने का आह्वान किया।
डॉ. विकास सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। विषय स्थापना करते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता विजय नारायण ने कहा कि आंदोलन अंग्रेज़ी के खिलाफ नहीं, बल्कि उसकी अनिवार्यता के विरोध और भारतीय भाषाओं के पक्ष में था। उन्होंने महात्मा गांधी के भारतीय भाषाओं के समर्थन और छात्र नायक देवब्रत मजूमदार के योगदान को विशेष रूप से याद किया।
प्रो. प्रताप ने आंदोलन में गैर-हिंदी भाषी छात्रों की भूमिका, राष्ट्रीय स्तर पर मधु लिमये और जॉर्ज फर्नांडिस की सहभागिता जैसे घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार छात्रों के दबाव में चौधरी चरण सिंह की सरकार को झुकना पड़ा और हिंदी को मान्यता दी गई।
बीएचयू शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. दीपक मल्लिक ने उपन्यास को ‘कालजयी’ बताते हुए अनुभव साझा किए तो जवाहर लाल नेहरू विवि के भाषा विज्ञान केंद्र के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने भारतीय भाषाओं की प्राण-प्रतिष्ठा और महत्व पर चर्चा की।
कार्यक्रम का संचालन राणा रोहित ने किया। डॉ. शम्मी सिंह ने आभार माना।