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यशिका

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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सत्य घटना….

आज यशिका को स्कूल आए हुए कई दिन हो गए थे। मुझे आशंका हो रही थी कि कहीं उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं हो गई। उसका मासूमियत से भरा चेहरा बार-बार मेरी नज़रों के सामने आ रहा था। पता नहीं,उस नन्हीं-सी गुड़िया में ऐसा क्या था कि उसे देखे बगैर मुझे चैन नहीं आता था।
यशिका कक्षा छठी कक्षा की छात्रा थी। बहुत ही छोटी-सी उम्र में भगवान ने उसे शुगर जैसी भयंकर बीमारी से ग्रसित कर दिया था। उसे रोज इन्सुलिन के इंजेक्शन लगते थे। वो बहुत परेशान थी,लेकिन उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती थी।
यशिका कक्षा में गुमसुम-सी बैठी रहती थी लेकिन जैसे ही मैं,आता वो खुशी के मारे फूली नहीं समाती थी। मैं भी उसे देखता तो दिल को एक सुकून-सा मिलता था। पता नहीं कैसा रिश्ता था उसके साथ मेरा। शायद पिछले जन्म का,बाप-बेटी का रिश्ता था जो इस जन्म में गुरु और शिष्या के रूप में मिला है। पढ़ाई में अव्वल नंबर लेकर आती थी यशिका। सबसे पहले होम वर्क की जाँच करवाती थी। सबसे पहले ज़वाब देती थी। उसकी कैचिंग पावर का तो जवाब ही नहीं था।
मैं उस समय राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फिरोजपुर(राजगढ़,अलवर-राजस्थान)में शिक्षक पद पर कार्यरत था। यशिका भी इसी स्कूल में कक्षा छठी की छात्रा तथा फिरोजपुर गाँव की ही रहने वाली थी। मैं कक्षा छठी में हिंदी पढ़ाता था। जो भी पढ़ाता,उसे तुरंत समझ में आ जाता था।
एक दिन तो कमाल ही हो गया। यशिका कक्षा में धीरे से मेरे पास आई और कान में कुछ कहा-सर जी मैं आपके लिए कुछ लेकर आईं हूँ।
मैंने कहा क्या लेकर आईं हो बेटे।
उसने धीरे से बस्ते में से एक थैली निकाली और मुझे पकड़ा कर अपनी जगह पर बैठ गई। मैंने थैली खोलकर देखा तो कमाल हो गया। उसमें लाल-लाल बेर थे।
मैंने कहा-अरे बेटे ये सब मेरे लिए लाई हो!
उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
मुझे ताज्जुब हुआ कि,एक नन्हीं-सी गुड़िया में कितनी आत्मीयता है। गुरु के प्रति कितनी श्रृद्धा है। मैं भाव विभोर हो गया था। बस उसे देखे ही जा रहा था। मैं बेर लेने से मना भी नहीं कर सका, क्योंकि जानता था कि अगर मना कर दूंगा तो उसकी भावनाओं को ठेस पहुंच जाएगी। मैंने कुछ बेर तो उसके सामने ही खा लिए तथा बाकी जेब में रख लिए थे। मैं देख रहा था यशिका बहुत खुश नजर आ रही थी। ऐसी थी वो प्यारी-सी गुड़िया।
आज यशिका को कक्षा में न देखकर मेरा मन उदास हो गया था। मैंने पड़ोस के बच्चों से पूछा तो पता चला कि यशिका को जयपुर लेकर गए हैं। उसकी तबियत बहुत ज्यादा ख़राब है।
अभी कुछ दिन पहले ही तो उसका जन्मदिन था। अपनी सहेलियों के साथ स्कूल के सभी बच्चों व सभी शिक्षकों को भी टाफी बांट रही थी और हमेशा खुश रहने की दुआ ले रही थी। सबको टाफी बांटने के बाद वो मेरे पास आई थी। मुझे यशिका ने पूरी ४ टाफी दी। कहने लगी-सर जी,आप शाम को घर पर आ जाना। पापा जी मेरे बर्थ-डे पर केक लेकर आएंगे।
मैंने उसकी भावनाओं को समझते हुए हाँ कह दिया,लेकिन बदकिस्मती रही कि मैं शामिल नहीं हो पाया।
उस दिन मेरा विद्यालय में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि यशिका जल्दी से ठीक हो जाए और घर पर आ जाए।
स्कूल की छुट्टी होने के बाद मैं सीधा घर आ गया था। मेरा बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था। बार-बार यशिका का मासूम चेहरा नज़रों के सामने आ रहा था। मैं सोच रहा था कि,इस नन्हीं-सी जान को भगवान ने इतनी बड़ी सज़ा क्यों दी है। इस जन्म में तो उसने कुछ किया नहीं है,शायद पिछले जन्म के कोई कर्म हों,जिसकी सजा आज भुगत रही है। खैर ईश्वर उसकी रक्षा करें।
यशिका के ताऊजी का लड़का राजदीप मेरा शिष्य रहा था। वो मुझसे फेसबुक से जुड़ा हुआ था। राजदीप यशिका को छोटी बहन मानता था और उसे बहुत प्रेम करता था।
उस दिन मैं खाना खाकर अपने कमरे में लेटे-लेटे मोबाइल पर फेसबुक देख रहा था। अचानक मोबाइल पर यशिका की फोटो देखकर मैं चौंक गया था। मेरे ऊपर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। सीना फटा जा रहा था। मेरे हाथ-पैर कांपने लगे। फोन हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी। राजदीप ने फोटो के नीचे लिखा था- ‘आज मेरी बहन यशिका इस दुनिया में नहीं रही।’

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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