राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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मैं जब भी अकेली होती हूँ
तनहाई में आ के,
घेर लेती हैं यादें मुझे
एक सुखद से आवरण में,
लपेट लेती हैं यादें मुझे।
‘
कुछ खट्टी, कुछ मीठी,
कुछ कड़वी, कुछ कसैली
कुछ बेहद सपनीली,
बहुत चाहती हूँ उठा के
झटक दूं आंचल से,
मगर साहस नहीं कर पाती,
अपने-आपको लगती असहाय मैं।
उन्हीं की गोद में सर ढक कर,
थपकी का इंतजार करती मैं
कभी रूठती,
कभी मान जाती मैं।
यादों में ही समा गया,
जैसे शेष जीवन
यादें ही बनकर रह गया
अब सारा जीवन।
मैं चुपचाप दूधमुंहे बच्चे-सी
गर्माहट की अनुभूति से सराबोर,
अपने-आपको लपेट लेती हूँ।
उसकी आगोश में सो जाती हूँ,
यादों में खो जाती हूँ॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।