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रहें ना रहें…महका करेंगें…

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि…

‘रहें ना रहें…महका करेंगें…’ इस अमर गीत के बोलों को लता मंगेशकर अमर कर गईं,आपका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। मानो,माँ शारदे आपका हाथ पकड़ कर ले गई,चलो बिटिया अब मेरे साथ रहना।
कहते हैं ब्रह्मांड में आवाजें सदा अमर रहती हैं। सदियों तक ध्वनि की तरंगें हमारे आसपास ही विचरती हैं। बचपन में आपकी मधुर कोकिला कंठ की आवाज से ही दिन की शुरूआत होती थी। माँ-पिताजी रेडियो में आपके गाए भजन और गीतों को सुबह लगा देते। पिताजी जब पार्श्वगायक गायक सहगल जी के गीत गाते,तो माँ लताजी के गाने गुनगुनाती थी। विद्यालय की शिक्षा के समय से ही रेडियो में पीछे से सुमधुर गीतों की धीमी आवाज शरीर में अमृत से घुलता और प्रेरणा मिलती। विविध भारती में सैनिकों की बेशुमार फरमाईशों में लता दीदी के गीत छाए रहते थे।
लता मंगेशकर जी की आवाज में एक अनहोना जादू रहा,लगता कि साक्षात सरस्वती देवी वीणा के संग गीत गा रही हैं। भारत की जनता उनके मधुर गीतों के रस में मदहोश-सी हो जाती है।
लता दीदी ईश्वर प्रदत कोकिला कंठ वरदान के कारण सबसे अलग थीं। हर तरह के भावों को, उतार-चढ़ाव को अपने स्वर से जीवंत कर देती थी। बचपन की नटखट बच्ची,शोख लड़की,प्रेम में डूबी लड़की,मातृत्व से भरी नारी,विरहन हृदय की पीड़ा, मीरा भजन जैसे मंदिर की पवित्रता,आरती की घंटी-सी,हर तरह के भावों को अपने मधुरम् स्वर से लता जी अमर कर गईं।
पिता का छाया सहसा उठ जाने के बाद १३ साल की लता दीदी ने अपने भाई-बहनों की जिम्मेदारी निभाने के लिए कितने संघर्ष किए होंगें,सोचकर हृदय दहल जाता है,पर उनकी दृढ़ता,तप,संयम, त्याग ने संघर्ष को रंग दिया।
पार्श्वगायिका के रूप में लता दी छा गई। माँ सरस्वती उनकी वाणी में सदा विराजमान रहीं और फिर सुरों की अमर लता बस गाती चलीं।
दादा साहब फाल्के,भारत रत्न,१९४७ में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक कीर्तिमान, लता जी की जादुई आवाज़ के भारतीय उप महाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने थे। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्व गायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया।
१९४९ ‘आएगा आनेवाला’ गाने के साथ (महल-फिल्म) से शुरुआत करने वाली लता जी ने ६ दशक तक ३६ भाषाओं में ३० हजार गाने गाए।
महानतम गायिका भारत रत्न लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ भारतीय सिनेमा की ही नहीं, हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अस्मिता की आवाज़ रही है। उनकी आवाज़ की पाकीज़गी में मंदिर की घंटियों,गिरजाघर की खामोशी,गुरुद्वारे की तान और मस्जिद की अजान रहती है। ऐसी सुंदर आवाज़ जो सदियों में कभी एक बार ही गूंजती है। लता का अर्थ भावनाओं की एक ऐसी बयार जो सुनने वालों को अपने साथ बहा ले जाए।
‘मेरी आवाज़ ही पहचान है…’,वक़्त के सितम,कम हसीन नहीं और आज हम यहाँ,कल कहीं नहीं…,लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो…’,ऐसे हृदय स्पर्शी गीतों की लंबी सूची है।
शालीन,नाज़ुक,गहरी और रूहानी आवाज़ से लता जी ने लगभग दशकों तक हमारी खुशियों,शरारतों, उदासियों,दु:ख,अकेलेपन और हताशा को अभिव्यक्ति दी। प्रेम को सुर दिए,व्यथा व आँसुओं को संभाला। देश की ३० से ज्यादा भाषाओं में गीत गाने वाली लता जी के लिए संगीत ईश्वर के लिए प्रार्थना ही था। संगीत के प्रति उनकी आस्था ऐसी गहरी थी कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में घुसने के पहले वे अपनी चप्पलें बाहर ही उतार देती थी। मानवीय भावनाओं और सुरों पर पकड़ ऐसी थी कि किसी के लिए यह पता करना मुश्किल हो जाता था कि उनके सुर भावनाओं में ढले हैं,या ख़ुद भावनाओं ने सुरों की शक्ल अख्तियार कर ली हैं।
वे सुर,ताल,उच्चारण और भावाभिव्यक्ति में प्रवीण थीं,बस इतना ही उनकी कला को समझने के लिए काफी नहीं। उन्होंने ‘कला’ को ‘सहजता’ में ही ऊंचाई दी। शास्त्रीय पारंगतता के बावजूद उनके गायन में उसके अतिरिक्त प्रदर्शन की चाह न थी। वे बखूबी जानती थीं,अतिरिक्त कला की अभिव्यक्ति अंततः कला को विरूपित करती है।
उनके लिए पं. हरि प्रसाद चौरसिया के शब्दों में- ‘कभी-कभार ग़लती से ही लता जी जैसा संपूर्ण कलाकार पैदा हो जाता है।’
सुर स्वर की अमर लता मंगेशकर जी पर बस इतना काफ़ी है कि वे एक ही थीं। न दूसरी लता हुई है,न होगी। जब तक पृथ्वी पर जीवन है,उनकी आवाज़ जीवन का हिस्सा रहेगी। हम ऐसे जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते जिसमें उनकी आवाज़ न हो। उन्होंने जैसे हमारी आत्मा को रचा और बांधा है।
सुरों की अमर ‘लता’ कोकिला कंठ की साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी आपको कोटि- कोटि नमन सहित विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित। आप सुरों की अमर लता हमारी रूह में, भारत के हृदय में,विश्व में अपनी मधुर स्वर के साथ सदा विराजमान हैं और रहेंगीं।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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