कुल पृष्ठ दर्शन : 7

रामघाट से अद्भुत जीवन दर्शन

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
*********************************************

गोदावरी के रामघाट पर मैं अक्सर जाता रहता हूँ, कितना विविधता भरा और अनोखा स्थल है यह। हमेशा से ही मुझे वहाँ गंगा-जमुनी तहजीब का साक्षात्कार होता आया है, साथ ही गजब का सांस्कृतिक समागम भी। गोदावरी का यह वही घाट है, जहाँ भगवान राम ने वनवास के दौरान पिता दशरथ जी की अस्थियाँ विसर्जित की थीं। दक्षिणी गंगा कहलाने वाली गोदावरी इसी स्थान पर दक्षिण दिशा का रुख करती है। गोदावरी, अरुणा और वरुणा नदियों का यह त्रिवेणी संगम इसलिए भारतभूमि पर पवित्रतम माना जाता है। कुम्भ पर्व के शाही स्नान भी इसी घाट पर सम्पन्न होते हैं। बारह महीने यहाँ मेले जैसा दृश्य बना रहता है। जन्म से मृत्यु तक के जीवन के सभी उत्सव यहाँ रोजाना हजारों की संख्या में होते हैं। भारत के सभी राज्यों से लोग आपको यहाँ आकर त्रिवेणी में स्नान करते नजर आएंगे। जब भी इस रामघाट की प्राचीर पर खड़ा होकर देखता हूँ तो गोदा मैया का यह रामघाट मुझे बहुत लुभावन, रोमांचक और रहस्यमय प्रतीत होता है। जीवन के सभी रसायनों का कमाल का संगम यहाँ घटित होता आप महसूस कर सकते हैं।
आनंद, दुःख, उत्सव, अवसाद, भक्ति, ध्यान, सौंदर्य, उपासना, आस्था, मुक्ति की अभिलाषा, आख़री क्रियाकर्म, विषाद और हर्ष क़ो एकसाथ अगर कोई अनुभव करना चाहे तो उसे गोदावरी के इस स्थान पर आना चाहिए। गोदावरी की लहरों के साथ कमाल का जीवन-दर्शन यहाँ हरपल घटित होता आप महसूस कर सकते हो। जीवन कितने-कितने सुरों का ताना-बाना है, कितनी समिश्र भावनाओं और रसों का मिश्रण है; इस बात की अनुभूति मुझे हमेशा ही यहाँ होती आयी है।
कल-कल बहती गोदा की तेजप्रवाही धारा में खड़ा होकर जब मैं इर्द-गिर्द नजरें दौड़ाता हूँ, तो गोदा मईया का विहंगम प्रवाह मेरा मन मोह लेता है। एक अलग ही प्रकार का सौंदर्य बोध मेरे अंदर जन्म लेता महसूस करता हूँ। गोदावरी का यह दर्शन मुझे अभिभूत कर देता है।
पास के चबूतरे और मैदान में सम्पन्न होते श्राद्ध विधि, ब्राह्मण पुजारियों के मन्त्रोचार, सगे सम्बन्धियों के जमावड़े, रोते- बिलखते परिजन, रामकुण्ड में विसर्जित होती अस्थियाँ और जल लहरों का निनाद बड़ा ही अनोखा और विस्मयकारी लगता है। तर्पण- समर्पण की अग्नि से उठता धुआँ नदिया की लहरों पर जब फैलता है, तो जीवन की क्षणभंगुरता यहाँ कितनी गंभीरता से महसूस होती है। ऐसे में मैं अपने-आपमें खो जाता हूँ। जाने कितना ही समय यूँ ही बिताकर किनारे पर आकर देखता हूँ, तब कितने ही दीपक गोदा के जल पर तैरते हुए लहरों में समाहित होते नजर आते हैं। अपना जीवन भी ठीक ऐसा ही तो है, बहते-बहते काल के प्रवाह में समाहित हो जाता है। कितनी ही देर तक उन दीप श्रृंखलाओं को ताकता हुआ जब किनारे पर आता, वहाँ का जश्न देखकर दंग रह जाता हूँ। ओह! ढोल-ढमाके के साथ कितने जुलुस यहाँ आकर ठहरे हैं। क्या कमाल नाचे जा रहे हैं लोग! कितनी तरह तरह के नाच, बेधुंध, बेहोश होते लोग, वहाँ देखो कितनी सारी औरतें, युवतियाँ, बालाएं बन-ठनकर नाच रही हैं। कलश लिए सुहागनें चल पड़ी हैं गोदा का जल भरने। ऊँचे-ऊँचे वस्त्र, अलंकार पहनी महिलाओं से गोदावरी का तीर कैसा सुसज्जित लग रहा है। उधर तो देखो, वो छोरियाँ कैसी बेसुध होकर नाच रही है। सामने के कपालेश्वर महादेव मंदिर से बहुत बड़ा काफ़िला ढोल मंजीरे बजाता गोदावरी की तरफ बढ़ रहा है। कितनी तल्लीनता से ढोल बजाए जा रहे हैं ये लोग! वाह! जीवन के कितने रस एकसाथ उमड़े हैं यहाँ पर। कितने-कितने सुर और कैसे-कैसे मेले, सब-कुछ अनूठा जीवन दर्शन कराता हुआ है। इन सबके बीच से गोदावरी का युगों-युगों से बहता पावन साक्षी प्रवाह, इतिहास की गवाही, भगवान राम से लेकर हमारे समय तक का निरंतर साक्षी है।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।