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रिश्तों की बुनावट…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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परिवार के ताने-बाने से,
रिश्तों में बुनावट होती है
अपनों की उपेक्षा पर ही,
मन में थकावट होती है।

रिश्तों को समझने में ही,
जिंदगी निकल जाती है
अपनों को सहेजने में ही,
मुश्किलें संभल जाती है।

रिश्तों का प्रत्येक रेशा ही,
जीवन की डोर से बंधा है
सुख-दु:ख की निजता में,
आत्मीय पलों से गुंथा है।

रिश्तों की सृजन शीलता,
में प्रेम का शिल्प होता है
त्याग धैर्य शीलता से ही,
अहंकार ये अल्प होता है।

दरअसल रिश्तों का भी,
एक अर्थशास्त्र होता है।
मानवीय मूल्यों के ह्रास,
में विलोम शास्त्र होता है॥

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