सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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भीगा तन, भीगी हवा,
भीगा है श्रृंगार…
मोहक रूप सुगंध प्रिय,
अतुलित है उपहार।
घबराकर कर ही दिया,
प्रेम निवेदन मीत…
आह्लादित हर भाव है
रोम-रोम संगीत।
गूँजा कुछ, करता गया,
उर में यह झंकार…।
प्रणय आकुल तृप्त तन-मन,
प्यासा है संसार॥
