राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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लोगों ने लाख था समझाया,
अनजान थी।
अपनी धुन में रही मगन,
मेरी न कोई,
जान-पहचान थी।
सूखी धरा पर बो दिए थे,
नेह के बीज!
क्या प्रस्फुटित होंगे ?
ये सोच-सोच परेशान थी।
बस…
बोने में ही रही सतत रत,
धैर्य सहित
बिना कामना, सोच-विचार,
भूल गई…
यादों की खाद, अश्रु के जल से
कैसे होंगे अंकुरित ?
रोज सींचती,
करती रही इंतजार, इंतजार…
ये क्या ?
अंकुरित हो गए वे नेह-बीज।
लो बादल भी आ गए,
उमड़-घुमड़ कर छा गए
अब प्रीति-बेल फैलेगी,
छा जाएगी चतुर्दिक
मन-आँगन में।
आशा कभी व्यर्थ नहीं जाती,
फलीभूत होती है॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।