सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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तकती दिन-रात राह मेरे मन बसे आप,
बावरी-सी घूम-घूम राम ही पुकारती
मेरे जीवन आधार करती मैं बहुत याद,
कुटिया मैं फूलों से नित ही सँवारती।
बेर लाई तोड़-तोड़ जाती मैं रोज़ भोर,
आएँगे पालनहार बाट मैं निहारती
आज अहो मेरे भाग्य पूरन हुई मेरी आस,
नयनों में राम की ही छवि मैं उतारती।
मीठे-मीठे बेर मैंने आपके ही लिए रखे,
टोकरी को रोज़ मैं फिर से सम्हालती।
चख-चख के बेर दिए, राम जी ने मुँह में लिए,
सफल आज जीवन यह मन में विचारती॥