शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
******************************************
यदि आप नहीं होते तो…(शिक्षक दिवस विशेष)….

विद्या का मंदिर विद्यालय, शिक्षक ज्ञान पुजारी हैं,
मिट्टी को मानव कर देता, ईश्वर का अवतारी है।
अंकों की गणना करवाता, वर्ण सभी समझा देता,
जीवन की गति निश्चित कर के सही मार्ग बतला देता।
शिक्षा दे नि:स्वार्थ भाव से, कितना पर उपकारी है,
मिट्टी को मानव…॥
विद्या दान बड़ा इस जग में, सब दानों से है भारी,
शिक्षक का सम्मान आज भी करती है दुनिया सारी।
आज तुल रही शिक्षा दौलत से, कैसी लाचारी है,
मिट्टी को मानव…॥
सुलभ मानते विद्या को अब, मोबाइल के आने से,
लेते ज्ञान आज गूगल से, शिक्षक हैं बेगाने से।
स्तर शिक्षा का उठा है ऊपर, किन्तु बढ़ी बीमारी है,
मिट्टी को मानव…॥
पूज्य हमेशा होते शिक्षक, सब उनका सम्मान करें,
सच्चाई की राह चलाते, कभी नहीं अपमान करें।
नमन करें शिक्षक समाज को, चरण कमल बलिहारी है,
मिट्टी को मानव कर देता ईश्वर का अवतारी है…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है