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श्रृंगार सृजन की साक्षी बनी गोष्ठी

सोनीपत (हरियाणा)।

उच्चस्तरीय हास्य और श्रृंगार सृजन की साक्षी बनी कल्पकथा काव्यगोष्ठी में इस बार भी हिन्दी भाषा व सदसाहित्य हेतु बेहतरीन रचनाएं प्रस्तुत की गईं। कहीं व्यंग्य तो कहीं पर्यावरण की चिंता से समाज को सचेत किया गया।
संस्था की संवाद प्रभारी ज्योति राघव सिंह ने बताया कि कल्पकथा परिवार द्वारा आयोजित साप्ताहिक आभासी काव्यगोष्ठी सृजनकारों के उच्चस्तरीय हास्य और श्रृंगार सृजन की साक्षी बनी। वाराणसी के वरिष्ठ साहित्यकार पण्डित अवधेश प्रसाद मिश्र ‘मधुप’ की अध्यक्षता एवं रायपुर के प्रबुद्ध साहित्यकार प्रमोद पटले के मुख्यातिथ्य के कार्यक्रम का शुभारंभ नागपुर से साहित्यकार विजय रघुनाथराव डांगे द्वारा संगीतमय गुरु वंदना, गणेश वंदना एवं सरस्वती वंदना के साथ किया गया।
आशुकवि भास्कर सिंह माणिक एवं पवनेश मिश्र के संचालन ममें पहली प्रस्तुति “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत” श्लोक वाचन के माध्यम से इंदौर निवासी विपुल एवं अंजली आनंदकर की ४ वर्षीय नन्हीं बिटिया वृद्धि आनंदकर के मधुर बाल स्वर में आई।
देहरादून के वरिष्ठ साहित्यकार हेमचंद्र सकलानी ने व्यंग्य रचना ‘गधों का दर्द’ से मनुष्य के दोहरे चरित्र को निशाने पर लेते हुए कहा “गधे ने गधों से कहा-हम नहीं हैं इतने बड़े गधे, यह नाम हमें तो कुछ गधों ने दिया।” उत्तरकाशी से प्रबुद्ध साहित्यकार डॉ. अंजू सेमवाल ने ‘प्राकृतिक आपदाएं’ रचना सुनाते हुए समझाया कि मनुष्य पृथ्वी पर अतिथि हैं उसको स्वामी बनने की भूल नहीं करनी चाहिए। कल्पकथा संस्थापक दीदी राधाश्री शर्मा ने कृष्ण भक्ति के अनुपम सृजन गोपी प्रेम गीत में भगवान श्री कृष्ण के प्रति गोपियों के भक्ति भाव को समर्पित सृजन “रात घोर अंधियारे में ज्यों निकली है घर से एक नार। स्नेह वन में कहाँ मिलेंगे उसको उसके कृष्ण मुरार॥’ सुनाया। श्री डांगे ने प्राकृतिक श्रृंगार को उकेरते हुए बरखा सृजन में “बदरिया कारी, झूमे अटारी, बरसे अम्बर प्रकाश झारी।” गीत मधुर स्वरलहरियों के साथ सुनाया। कवि नीरज कुमार चौधरी, भगवानदास शर्मा, बिनोद कुमार पाण्डेय, दुर्गादत्त मिश्र व डॉ. मंजू शकुन खरे आदि ने भी पाठ किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में ‘मधुप’ ने कहा कि समाज में सद्भाव, समभाव, चैतन्यता के शिल्पकार साहित्यकार ही होते हैं। मुख्य अतिथि श्री पटले ने वृद्धि आनंदकर को आशीष देते हुए कहा कि वृद्धि जैसी नन्हीं प्रतिभाओं के रूप में सनातन संस्कृति उत्तरोत्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर है।
राधाश्री शर्मा ने सभी का आभार प्रकट किया।