डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है कि कोई मंत्री यदि आपत्तिजनक बयान दे दे, तो क्या उसके लिए उसकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ? यह मुद्दा इसलिए उठा था कि आजम खान नामक उ.प्र. के मंत्री ने बलात्कार के मामले में काफी आपत्तिजनक बयान दे दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों में से ४ की राय थी कि, हर मंत्री अपने बयान के लिए खुद जिम्मेदार है। उसके लिए उसकी सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस राय से अलग हटकर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्न का कहना था कि यदि उस मंत्री का बयान किसी सरकारी नीति के मामले में हो, तो उसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाली जानी चाहिए। शेष चारों जजों का कहना था कि संविधान कहता है कि देश में सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता का जो भी दुरूपयोग करेगा, उसे सजा मिलेगी। ऐसी स्थिति में अलग से कोई कानून थोपना तो अभिव्यक्ति की इस स्वतंत्रता का हनन होगा। संविधान की धारा १९ (२) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जो भी मर्यादाएं रखी गई हैं, वे पर्याप्त हैं। चारों न्यायाधीशों की राय काफी तर्कसंगत प्रतीत होती है, लेकिन जज नागरत्न की चिंता भी ध्यान देने लायक है। आखिर मंत्री का बयान प्रचारित इसलिए होता है कि, वह मंत्री है। वह सरकार का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन उसके व्यक्तिगत बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है ? इसके अलावा यह तय करना भी आसान नहीं है कि उसका कौन-सा बयान व्यक्तिगत और कौन-सा उसकी सरकार से संबंधित है। कानून की नई सख्तियाँ लागू करने से भी ज्यादा जरूरी है कि, मंत्री और नेता खुद पर ज़रा आत्म-संयम लागू करें। उनका मंत्रिमंडल और उनकी पार्टी उन्हें मर्यादा में रहना सिखाए। दुखद स्थिति यह है कि, दल और सरकार के सर्वोच्च नेता भी अनाप-शनाप बयान देने से बाज नहीं आते। अखबार और टी.वी. चैनल भी उन जहरीले चटपटे बयानों को उछालने का मजा लेते हैं। यदि हमारी खबर पालिका अपनी लक्ष्मण-रेखाएँ खींच दे, तो इस तरह के जहरीले, कटुतापूर्ण और घटिया बयानों पर किसी का ध्यान जाएगा ही नहीं। जो नेतागण इस तरह के बयान देने के आदी हैं, उनकी पार्टी उन पर कड़े प्रतिबंध भी लगा सकती हैं, उन्हें दंडित भी कर सकती हैं। यदि हमारी खबर पालिका और दल संकल्प कर लें तो वे नेतागण की इस बदजुबानी को काफी हद तक रोक सकती हैं। अदालतों के सहारे उन्हें रुकवाने से यह कहीं बेहतर तरीका है।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।