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संसार है कैसा…!

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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यह संसार है कैसा,
देखते हैं हम जैसा
या सोंचते हैं वैसा,
संसार है कैसा ?

मिला एक किसान से,
बताया वह ईमान से
संसार है कर्म का घर,
कर्म से चलता सफ़र।

फिर दिखा एक वैज्ञानिक,
उसने कहा-भाई रूको तनिक
यहाँ केवल विज्ञान का खेला है,
खोज आविष्कारों का ही रेला है।

अब जैसे ही आगे बढ़ा,
सम्मुख पाया नेताजी खड़ा
बोला सब राजनीति का अखाड़ा है,
यहाँ दांव-पेंच का खेल सारा है।

अब मिला एक दुष्ट अधिकारी,
कहा संसार अन्याय का बाजार है
पैसे बिना सब लंगड़ा लाचार है,
रिश्वत से ही चलता यह संसार है।

फिर मिला मैं एक सज्जन से,
बोला ईमानदारी से चलता संसार
यहाँ न कोई अपना न कोई पराया,
यहाँ घिरी हुई है कर्मों की छाया।

अब मिला मैं एक सन्यासी से,
बताया संसार माया-मोह का मेला है
आए हो अकेले, जाना भी अकेला है
ईश्वर ही अपना बाकी सब झमेला है।

कहता ‘राजू’, ध्यान लगा सुनो आज,
यह संसार है एक चमकता आईना।
जैसे बन खड़े रहोगे, तुम उसके पास,
छवि वैसी ही पाओगे संसार के पास॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।