संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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बसंन्त पंचमी: ज्ञान, कला और संस्कृति का उत्सव…
ऋतुराज बसंत की आहट से ही मन में कुछ अजीब-सी हलचल होने लगती है। वातायन में अलग ही सरसराहट-सी होने लगती है। शिशिर की ठंडी हवाओं की कम्पन ढीली पड़ने के साथ ही कुछ बदला-बदला सा रोमांचक एहसास महसूस होने लगता है। मन के इन सुरभित अहसासों को देखते ही हर वन, उपवन, जंगल में पलाश की किलकारियाँ सुनाई देती है। पलाश के केसरिया परचम देखते ही मन मयूरा अपने श्रृंगारित परों को खोलकर ख़ुशी से झूमने लगता है। लगता है जैसे कोई आ रहा है, जरूर कोई खास आ रहा है। अगले ही कुछ दिनों में आम्र मंजरियों की खुशबू घर-आँगन और कानन में हवाओं संग उड़ेलने लगती है। आम्र मंजरियों की सुगंधित बयारें मन के आँगन में बसंत के सुगंधित हस्ताक्षर कर देती है। बसंत के आगाज से वन, उपवन, मधुबन, कानन सुरभित होकर गूँजने लगते हैं। प्रकृति का सबसे मदमाता उत्सव जो मानवीय मन के धरातल को पल्लवित और पुलकित कर देता है, वह यही है। इस बसंत के आगमन से समूची सृष्टि श्रृंगारित होती जाती है।
सृष्टि के ऐसे रोमहर्षक श्रृंगार में शाल्मली का श्रृंगारित होना हमेशा मुझे रोमांचित करता आया है। किसी औघड़ साध्वी-सी खड़ी शाल्मली की सूखी मृतप्राय: टहनियों का रातों-रात अजस्त्र कलियों से लद जाना और देखते ही देखते शाल्मली के वृक्षों का लालीलाल फूलों से भर जाना मुझे चकित कर देता है। पलाश से शुरू हुआ श्रृंगारने का सिलसिला अमलतास के स्वर्णिम गजरों से लदकर बसंत का आखरी पड़ाव गुलमोहरों के लालीलाल खिलने तक जारी रहता है। बसंत प्रकृति और संस्कृति का सबसे रोमांचक पर्व है।
बसंत का प्रकटीकरण ज्ञान, कला की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती के प्राकटय से जुडा हुआ है। ब्रम्हा जी ने सृष्टि का आरंभ किया था, उसमें सब-कुछ होने के बावजुद वीरानी-सी लगती थी। इस कमी को पूरा करने हेतु ब्रम्हा जी और भगवान विष्णु जी ने दुर्गा जी को प्रकटकर यह समस्या बताई। तब आदि शक्ति दुर्गा माता के शरीर से श्वेत रंग का भारी तेज उत्पन्न हुआ, जिससे एक चतुर्भुज दिव्य नारी प्रकट होते ही वीणा के स्वर झंकृत कर दिए, जिससे समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई। पवन में सरसराहट होने लगी और जलधाराओं से कल-कल संगीत फूट पड़ा। वाणी, संगीत और माधुर्य को अंजाम देनेवाली उस दिव्य शक्ति को ‘सरस्वती’ कहा गया। देवी सरस्वती के प्रकटीकरण के साथ ही प्रकृति में बसंत का आगमन हुआ और नवचेतना एवं उल्लास से धरा भर गई। इसलिए बसंत पंचमी माँ सरस्वती का अवतरण दिवस है। इसी कारण बसंत पंचमी को ज्ञान कला एवं संस्कृति का उत्सव कहा जाता है। इस दिन बच्चों की शिक्षा प्रारंभ करने का दिन माना जाता है। बच्चों की छोटी जिव्हा पर शहद से ‘ए’ अक्षर लिखकर उन्हें स्लेट और पेन्सिल पकडाई जाती है तथा जीवन का विद्यारंभ किया जाता है।
वसंतोत्सव फागुन की होलिका पर्व की शुरूआत है। जैसे-जैसे प्रकृति रंगारंग होती जाती है, मानवीय मन और समस्त जीव-सृष्टि आनंद से भरती जाती है। नर-नारियों के मानसिक धरातल पर प्रेम का इंद्रधनुष उभरने लागता है। विरहिणीयों को अपने पिया की याद सताने लगती है। विरहिणी प्रिया सज-धजकर अपने प्रिय के इंतजार में खोकर रंगीन सपने सजाती है।बच्चे, युवा, बुजुर्ग सब होली का इंतजार करते पुलकित, पल्लवित और जोशीले बन जाते हैं। सब पर बसंत का खुमार चढता ही जाता है।
आम्रवन में छिपकर कोयलिया बसंत के गीत गाती है तो पपीहा के बोलों में अलग ही सरगम भर जाती है। चुलबुली चिड़िया न जाने कौन-से आनंद से भर जाती है तो भंवरे मंडराने, तितलियाँ फुदकने लगती है। सारा माहौल गुलाल-गुलाल सा गुल-गुलाल बनकर फागुन का रंग चढ़ाने लगता है। आखिर बसंत राज मदन स्वरूप जो है।
“देखो री सजनिया बसंत आयो री,
मन की गहराई में कैसा छायो री।
मन तो रंग-रंगीला हुआ, जो छेन छबीला,
पुरवाई से देखो उमड़ा गन्धों का रेन कबीला।
अमराई से कौन बोला, ये किसने अबीर उंडेला,
कहाँ से आया भ्रमित भ्रमरों ये गुनगुनाता टोला।
ढम-ढमा-ढम देखो तो ये किसने ढोल बजाई री,
मन मयूरा और दिल फकीरा किसने आग लगाई री।
बसंत आयो री, सखिया बसंत आयो री…॥
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।