डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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साँस लेना भी हुआ आज क्यूं मुश्किल मेरा,
आज क्या हाल है या रब सरे महफ़िल मेरा।
ग़म के सेहरा से जगा फिर मुझे मालूम हुआ,
खो गया फिर कहीं वीरान में खुश दिल मेरा।
तू थी मज़लूम ये क़ातिल ने भी माना आख़िर,
जाने क्या सोच के रोता रहा कातिल मेरा।
अब न उम्मीद, न चाहत, न तमन्ना कोई,
मन हुआ वक़्त की ठोकर से ही ग़ाफ़िल मेरा।
बीच दरिया में हूँ पतवार भी छूटी मुझसे,
क्या पता अब न मिले छूट
साहिल मेरा।
ज़ख़्म अपनों से मिले गैर की क्या बात करूं,
अब बना दर्द ग़म-ए-दौरान ही हासिल मेरा।
लोग कहते रहें पर अब मेरे मुंसिफ बनकर,
तुम ही इंसाफ करो हक मेरा बातिल मेरा।
जिसको चाहा था सदा जान से बढ़कर ‘शाहीन’,
भूलकर मेरी वफ़ा, तोड़ दिया दिल मेरा॥