रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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काहे रे मन दुःखी हो
कि तेरा अपना कोई नहीं,
दिल की नज़र से तूने
अब तक किसी को देखा ही नहीं,
रोज सबेरे माँ की तरह
गौरैया लोरी गाती है,
सूरज की किरणें
तुम्हें दुलराती हैं,
अपनी गरमी से तुझे
आगोश में भर लेती है,
मधुर-मधुर मुस्कानों से तुझे
जीवन का पाठ पढ़ाती है।
दोपहर की रौद्रता तुझे
मीठी डाँट सुनाती है,
कर्म करने के लिए
बारम्बार प्रेरित करती है,
जितना भी तू अलसाए
तुझे न वह छोड़ती है,
भूख की आग तुझे
कर्म में झोंक देती है,
उसको तेरे सुख-दुःख का
ज्ञान बहुत ही रहता है,
इसलिए ही तो
शाम का आगमन,
अँधेरे का आभास कराकर
रात को रूप धर चाँदनी का,
माँ आती है पुचकारने
हवा दे-दे कर थपकी तुझे,
आ जाती है सुलाने
तारे चमक-चमक कर,
तुझे फुसलाते हैं
और कहती है,-
रात की मधुरिम बेला है।
तू सो जा,
नहीं चाँद अकेला है॥