शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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उमड़-घुमड़ कर आये बदरा दादुर करते शोर,
दम-दम दमक रही दामिनियाँ नाच उठा मन मोर।
कि सावन आया है, ये मन हर्षाया है॥
घन-घन गरजे कारी बदरिया बिजुरी चमके जोर,
ठंडी-ठंडी चले बयारी जल बरसे घनघोर।
भरे लबालब सभी सरोवर ताल तलाया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
गर्मी की रुत चली गई, अब बरखा की रुत आई,
खेती होगी हरी भरी अरु महकेगी अमराई।
सोच-सोच खुश हो किसान हल लेकर आया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
फूल खिलेंगे अब बागों में कलियाँ मुस्कायेंगी,
भँवरों की गुन-गुन से बगिया गूँज गूँज जाएगी।
फैला कर के पंख मोर ने नाच दिखाया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
धरती पर हरियाली छाई मौसम हुआ सुहाना,
तन-मन खिला देख सरसों का लहर-लहर लहराना।
ओढ़ चुनरिया धानी प्रेम तराना गाया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
अमुआ पर झूले डालेंगे झूलेंगी सब सखियाँ,
संग सजनवा भी झूलेंगे डाल गले गलबहियाँ।
सावन के गीतों से कैसा रंग जमाया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
चरवाहे सब चरागाह में बैठे ढोर चराए,
खेती की हरियाली रुत में तेजा देव मनाये।
मधुकर सुरों में अलगोझों पर गीत सुनाया है,
कि सावन आया है ये मन हर्षाया है…॥
परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है