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साहित्य सम्मेलन में विविध छंदों से किया देश और वीरों का नमन

पटना (बिहार)।

‘मैं विश्व गगन के वक्ष स्थल पर भारत का गौरव गान लिखूँ, जब तक तन में प्राण रहे, मैं जय-जय हिंदुस्तान लिखूँ!’, ‘दुनिया भर में महाशक्ति बनने का लक्ष्य हमारा है/अखिल विश्व में सबसे प्यारा भारत देश हमारा है’ ‘तू वसुधा का मानस हृदय/तू मनुष्यता मन-प्राण/तुम सृष्टिकर्ता की अमर कृति/तू माँ मेरी भारत महान! ऐ माँ! तुझ पर हम सब कुर्बान!’
राष्ट्रीय और देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत ऐसी ही पंक्तियों से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का कण-कण गूँज रहा था। अवसर रहा सम्मेलन सभागार में स्वतंत्रता दिवस समारोह सह राष्ट्रीय गीत गोष्ठी का। इसमें तालियों की गड़‌गड़ाहट और लहराते तिरंगे से श्रोतागण ने कवियों व कवयित्रियों को मादक उत्साह दिया। चंदा मिश्र ने राष्ट्र-वंदना से इसका आरंभ किया। गीत गोष्ठी में ३ घंटे तक ३० से अधिक कवियों ने रचनाओं का पाठ किया। कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने अपनी इन पक्तियों से श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया कि ‘मैं कवि हूँ नित सहज भाव से, राग भारती गाऊँ/कोटि नमन तुम्हें अभिनन्दन है, पावन हिंद महान। लिखूँ जब तक तन में प्राण रहे मैं जय-जय हिंदुस्तान लिखूँ!’ कवि हृदय नारायण झा के मधुर स्वर से पढ़े गए इस गीत को भी श्रोताओं ने मन से सुना कि ‘देश-भक्ति में जीवन जीने का आदर्श यहाँ कायम है।’
कवयित्री आराधना प्रसाद, सिद्धेश्वर ने भी स्वाधीनता दिवस को समर्पित एक से बढ़कर एक शायरी प्रस्तुत की। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डॉ. मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन, डॉ. रत्नेश्वर सिंह व अभिलाषा सिंह, रवि रंजन आदि ने अपनी रचनाओं का प्रभावशाली पाठ किया। अध्यक्षीय काव्य पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने इन पक्तियों से भारत-वंदना की कि ‘तू वसुधा का मानस हृदय / तू मनुष्यता का मन-प्राण/तुम सृष्टि-कर्ता की अमर-कृति/तू माँ मेरी भारत।’
आरंभ में डॉ. सुलभ ने सम्मेलन प्रांगण में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर साहित्य समाज से प्रेरणा के गीत गाने की प्रार्थना की। इस अवसर पर ‘लेख्य मंजूषा’ द्वारा प्रकाशित और विभारानी श्रीवास्तव द्वारा संपादित पत्रिका ‘साहित्यिक स्पंदन’ का लोकार्पण अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अधिकारी आनन्द बिहारी प्रसाद ने किया।

मंच संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।