राधा गोयल
नई दिल्ली
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जाने-अनजाने जीवन में ऐसा भी हो जाता है,
जो जीवन की सारी खुशियों को चौपट कर जाता है
कभी किसी अहित न चाहा, हमने जाने-अनजाने,
शाम-सवेरे छेड़ा करते थे, सुख के लबरेज तराने
एक डाल पर बना बसेरा, हम दोनों सुख से रहते थे,
दाने चुगकर पेट पालते, गिला किसी से न करते थे
इस मानव को मेरा सुख से रहना रास न आया,
जंगल सभी नष्ट कर डाले, मेरा सुख संसार मिटाया।
मैंने जाने-अनजाने भी बुरा किसी का नहीं किया था,
क्यों मानव ने पेड़ काटकर मेरे नीड़ को ध्वस्त किया था ?
फल-फूलों से लदे पेड़, सब जीवों का पोषण करते हैं,
तप्त धूप में थके पथिक को, छाँव से आल्हादित करते हैं
ऑक्सीजन उत्सर्जन करके कार्बन को जो सोख लेते हैं,
और बाढ़ के भयावह मंजर तक को भी कम कर देते हैं।
पढ़ा-लिखा मानव शायद वृक्षों के महत्व को नहीं जानता,
पहले के लोगों के जैसे, इन्हें देवता नहीं मानता
बेदर्दी से पेड़ काटकर, कांक्रीटों के नगर बसाए,
किन्तु बाढ़ के कहर ने आकर उनके सारे स्वप्न बहाए
पेड़ों के कटने के कारण ही इतना उत्पात मचा था,
धरा रह गया सब विकास, धरती पर हाहाकार मचा था
वक्त के रहते संभल जा मानव, प्रकृति का यूँ दोहन मत कर।
सब प्राणी सुख से जी पाएँ, सबके मन को सुकून से भर॥