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हमारी हिंदी भाषा और संकल्प

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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हिंदी संग हम…

हिंदी का जन्म कब हुआ, यह इंगित नहीं किया जा सकता है। इतिहास का कहना है कि, दशवीं शताब्दी के आसपास ‘अपभ्रंश’ भाषा थी। यह भी मान्य है कि, हिंदी का जन्म सधुकड़ी, खिचड़ी व भोजपुरी से हुआ। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो सम्पर्क भाषा हिंदी का जनक आदिकवि अमीर खुसरो को ही स्थापित किया जाएगा, जिन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करके सिंधी से तमिल तक भारतीय भाषाओं व बोलियों के संपर्क में आकर हिंदी के प्रथम शब्दकोश ‘खालिकबारी’ की रचना की, और ७०० साल पहले जब राष्ट्रभाषा फारसी थी, तब दिल्ली सल्तनत द्वारा इस शब्दकोश की लाखों प्रतियाँ जनता में बांटी गई, ताकि जनता हिंदी को एक नवसृजित संपर्क भाषा के रूप में अपनाए। हिंदी तब ‘भारतीय भाषा’ मानी जाने लगी। भाषा व साहित्य देशकाल, धर्म एवं जाति की सीमा से आजाद होते हैं। हजारों साल की यात्रा करने के बाद भी हजारों मील दूर जीवित रहते हैं, इसलिए हमारी भाषा हिंदी भारत व नेपाल के अलावा मॉरिशस तथा दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में भी मिले-जुले शब्दों के साथ प्रचलित है। यही कारण है कि, विभिन्न विदेशों में हिंदी के सम्मेलन होते रहते हैं।
सालों से हमारे देश के लोग विदेश जाते रहे हैं, पर उन्होंने अपनी भाषा व संस्कृति को हृदय में संजोए रखा है। हिंदी कहीं न कहीं उनकी आत्मा में जीवित है। विदेशी नागरिक भी भारतीय संस्कृति व हिंदी से आकर्षित हैं।
हमारी हिंदी भोजपुरी, ब्रज, अवधी और कौरवी के गर्भ से निकली भाषा बनी। उस काल में साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध रचनाएँ दोहे रूप में ही थीं।
तुलसीदास जी रचित ‘रामचरित मानस’, अकबर के नवरत्न रहीम द्वारा रचित कृष्ण भक्ति के दोहे, फिर मीरा व सूरदास के पद्यों ने हिंदी को और समृद्ध बनाया। श्रृंगार, शौर्य और पराक्रम आदि के वर्णन हिदी में होते थे। हिंदी के जन्म और विकास में सनातन व महान भारतीय संस्कृति ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। विद्यापति ने हिंदी को ‘देसी भाषा’ कहा है। सिखों के पुराने धर्म ग्रन्थों में हिंदी के हजारों कविताएं हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के ग्रन्थ ‘सत्य प्रकाश’ को हिंदी में ही प्रस्तुत किया। उर्दू के स्थापित कथाकार धनपत राय प्रेमचंद हिंदी में कहानियाँ लिख हिंदी के ‘कथा सम्राट’ बने। इसी क्रम में अनेक नामी मूर्धन्य हस्ताक्षरों ने अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया, जिनमें महादेवी वर्मा, नागार्जुन जी, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर जी, सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, हरिवंशराय बच्चन, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आदि को सदा श्रद्धा से याद किया जाता है। इस तरह से हिंदी समृद्ध होती चली गई। कविता, कहानी और लेखों का लगातार लिखना चलने लगा। हिंदी लोगों के बीच संपर्क की भाषा बनती चली गई। शनै:-शनै: हिंदी में विकास ने गति पकड़ी ।
बेल्जियम से आए भारतीय नागरिकता प्राप्त संस्कृत व हिंदी के विद्वान गुरु और अनेक भाषाओं के ज्ञाता फादर कामिल बुल्के ने हमारे समाज को प्रामाणिक हिंदी का शब्दकोश लिख कर दिया, जो सर्वमान्य है। महात्मा गाँधी ने भी हिंदी को भारत के लिए श्रेष्ठ माना था।
इस तरह हम कहें तो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि, आपने अंग्रेज़ी या जर्मनी भाषा की किताबों से पढ़ाई की हो। फर्क तब पड़ता है, जब आपको चुनाव करना पड़े तो आप हिंदी भाषा के बदले किसी और भाषा का चुनाव करें। गरज है कि, हम हिंदी भाषा को धर्म, मजहब, परिवेश, पेशे, व्यवसाय, राज्य, समुदाय आदि के सीमित और संकुचित दायरों से बाहर निकल कर, परे जाकर सम्मान दें। हम सब हिंदी को अपना सम्मान समझें और सम्मानित करें। वेश बदला, दरवेश बदला लेकिन बोली-भाषा कभी न बदली.. हिंदी हैं हम, वतन है भारत।
हिंदी हमारे भारत की अनुपम संपर्क भाषा है, जिसकी गरिमा अमूल्य है, और आजकल अंतरजाल के युग के दौर में हिंदी चारों तरफ छाई हुई है। यह भारत की आत्मा में निवास करती है। हिंदी के विकास व प्रचार के लिए कार्य शुरू हो गए हैं। कार्यालयों में इसका उपयोग शुरू हो गया है। जैसे अन्य विदेशी भाषा हमें आकर्षित करता है, तो हमें यह भी देखना होगा कि हमारी नई पीढ़ी, हमारे बच्चे हिंदी से विमुख ना हों। उनमें हिंदी के प्रति रूचि को जागरूक करना और रखना आवश्यक है। इसके लिए अभी नए उपाय करने होगें। हिंदी का महत्व, इसकी सुंदर यात्रा चलती रहे और इसका गौरव सारे विश्व में अपनी गरिमा के संग सदा बढ़ता रहे, यही हृदय की मंगलकामना है।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है