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हम उनके ऋणी

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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गूढ़ रहस्य है धर्म सनातन,
कण-कण में बसते भगवान
कुछ बातें ऐसी भी है इनमें,
जिन बातों से हम अनजान।

कहते कुछ ना लेकर आता,
ना लेकर जाता है, इन्सान
पर संचित कर्मों का लेखा,
लेकर आता-जाता है इन्सान।

सूर्य पिता और चाँद को माता,
सिखलाता हमें ज्योतिष विज्ञान
सुख-शांति का पाठ पढाता,
करना रिश्ते-नातों का सम्मान।

जो कल थे, वे आज नहीं हैं,
उनकी पहचान, वंशज हम हैं।
छोड़ गए, अनमोल धरोहर,
उस सम्पदा के भोक्ता हम हैं।

मिले आशीष हमें पितरों का,
श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करें
पर ध्यान रहे, जीवित रहते भी,
हम उनका आदर-सम्मान करें।

जीवित थे तब भी शुभचिंतक,
पितर बन भी आशीष बरसाएँ।
नमन करें, उन पितर गण को,
शायद ही हम उऋण हो पाएँ॥