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हवा से ही हमारी हवा

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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आज जागतिक हवामान दिन है,
हम सब और कुछ नहीं
बस हवा में पलती मीन हैं।

हवा से ही तो हमारी हवा है,
हवा से ही तो हम जवां हैं
ये हवा नहीं रही तो, हम हवा हो जाएंगे
हवा हो गए तो फिर क्या पाएंगे ?
हम हवा न हो जाएँ इसलिए,
हवा को बचाना होगा
हमारी हवा भी बनी रहने के लिए,
हवा से रिश्ता निभाना होगा।

वैसे, सबसे करीबी हमारी बस
हवा ही तो है,
पंचप्राण बनकर बसती है हमारी रगों में
पान, अपान उदान, समान
पालती है प्राण तत्व को,
पोसती है हमारे निजत्व को
हमारी साँस-साँस का सहारा,
हमारी चेतना का संबल गहरा।

हवा बिन प्राणों की कल्पना असंभव है,
हवा बिन आस्तित्व की कल्पना ना संभव है
और हम हैं हवा को ही, हवा बनाने पर तुले हैं,
यहा हवा की ही हवा निकालने के जलजले हैं
हमने क्या नहीं किया हवाओं के साथ,
हमने क्या नहीं किया फ़िजाओं के साथ
हमारे अत्याचारों की श्रृंखला बहुत लंबी है,
रास्तों को हमने धुआँ उगलती चिमनियों से भर दिया
शहरों को हमने कल-कारखानों से घनघोर किया।

रात-दिन दावानल सुलग रहे हैं जंगलों में,
खेतों से गेहूँ का धुआँ निकल रहा है
आँगन-आँगन पेड़ों की चिताएं जल रही हैं,
आदमी तेरी करतूतें हवा को बहुत खल रही है
चारों ओर हवाओं पर अत्याचारों का सिलसिला है,
आदमी बस तुम्हारी करनी से दिल जला है।

अब तुम्हें अपनी औकात समझ लेनी चाहिए,
क्यों पृथ्वी का गला घोटने पर तुले हो ?
कहीं उस सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का किस्सा,
तुम्हारे साथ ना घटित हो जाए॥

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।