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हाथरस हादसा: मौतों की जवाबदेही तय हो

ललित गर्ग

दिल्ली
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उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक सत्संग के समापन के बाद मची भगदड़ में १२१ इक्कीस लोगों के मरने एवं सैकड़ों लोगों के घायल होने की हृदयविदारक, दुःखद एवं दर्दनाक घटना ने पूरे देश को विचलित किया है। ऐसी घटनाएं न केवल प्रशासन की लापरवाही एवं गैर जिम्मेदारी को उजागर कर रही है, बल्कि धर्म के नाम पर पनप रहे आडम्बर एवं पाखण्ड को भी उजागर कर रही है। ऐसी घटनाओं से जुड़े पाखण्डी बाबाओं की कारगुजारियों से हिन्दू धर्म भी बदनाम हो रहा है, जबकि सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले बाबा को हिंदू धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। यह हादसा अनेक सवालों को खड़ा करता है। बड़ा सवाल है कि, ऐसे बड़े आयोजन में सुरक्षा उपायों की अनदेखी क्यों होती है ? सवाल उठता है कि इतना बड़ा आयोजन बिना पुख्ता इंतजाम के किसकी अनुमति से किया जा रहा था ? क्या सुरक्षा मानकों का पालन किया गया ? क्या इतने बड़े आयोजन की सुरक्षा का जिम्मा पुलिस-प्रशासन का नहीं होता ? क्या आयोजन-स्थल पर बचने के पुख्ता इंतजाम जरूरी नहीं थे ? अब जवाबदेही तय हो भगदड़ में गई जानों की। जाहिर है कि, घटना पर लीपा-पोती की कोशिश भी जमकर होगी, राजनीतिक दल एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हुए जमकर राजनीति भी करेंगे। यह तय है कि, ऐसे बाबाओं की दुकान बिना राजनेताओं के वरदहस्त के चलनी संभव नहीं है।
हाथरस के इस बाबा से जुड़ी बातें विसंगतियों से भरी है। सफ़ेद कोट-पेंट, टाई पहनने वाला यह बाबा कोई पंडित नहीं है, न साधु संत है। यह जूता पहनकर प्रवचन देता था। इस बाबा को कितने वेद पुराण का ज्ञान है, यह किस परंपरा से है, इसके गुरु कौन हैं ? ऐसे अनेक प्रश्न है जो बाबा को शक के घेरे में लेते हैं। इन्हें हिन्दू बाबा कैसे कहा जा सकता है ? हिंदू धर्म में ऐसा कहाँ होता है ?
भारत में भोली-भाली जनता को ठगने एवं गुमराह करने वाले ऐसे पाखण्डी बाबाओं की बाढ़ आई हुई है। इस तरह की घटनाएं केवल जनहानि का कारण ही नहीं बनतीं, बल्कि देश-धर्म की बदनामी भी कराती हैं। इन घटनाओं पर पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के बजाए राजनीति करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और निंदनीय भी।
हाथरस की घटना कितनी अधिक गंभीर एवं चिन्ताजनक है कि, प्रधानमंत्री ने लोकसभा में इस हादसे की जानकारी दी एवं शोक-संवेदना व्यक्त की। यह तय है कि हाथरस में इतनी अधिक संख्या में लोगों के मारे जाने पर शोक संवेदनाओं का तांता लगेगा, लेकिन क्या ऐसे हादसों को नियंत्रित करने वाले ऐसे कोई उपाय भी सुनिश्चित कर सकेंगे, जिससे भविष्य में देश को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटना न हो सके ? प्रश्न यह भी है कि आखिर धार्मिक आयोजनों में धर्म-कर्म का उपदेश देने वाले लोगों को संयम और अनुशासन की सीख क्यों नहीं दे पाते ? कब तक ऐसे आयोजन धन कमाने के माध्यम बनते रहेंगे ? जब-जब धर्म का ऐसे पाखण्ड एवं पाखण्डियों से गठबंधन हुआ है, तब-तब धर्म अपने विशुद्ध स्थान से खिसका है। ऐसा लगता है कि, अपने देश में धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में कोई इसकी परवाह नहीं करता कि यदि भारी भीड़ के चलते अव्यवस्था फैल गई तो उसे कैसे संभाला जाएगा ?
एक डरावनी एवं संवेदनहीन हकीकत है कि, हम ऐसे धर्म एवं धार्मिकता से जुड़े पिछले हादसों से कोई सबक नहीं सीखते। हाल के दिनों में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ में लोगों के मरने के मामले लगातार बढ़े हैं। सवाल उठना स्वाभाविक है कि, भीड़ के बीच होने वाले हादसों को कैसे रोका जाए। २ साल पहले माता वैष्णो देवी परिसर में भगदड़ में १२ श्रद्धालुओं की मौत, अप्रैल २३ में बनारस की भगदड़ में २४ मौत और इंदौर में रामनवमी के दिन बावड़ी की छत गिरने से ३५ लोगों की मौत आदि घटना को लोग भूले नहीं हैं। भीड़ की भगदड़ से होने वाले ७० फीसदी हादसे धार्मिक आयोजनों के दौरान ही होते हैं।
विडम्बना है कि इन बड़े-बड़े हादसों से न तो जनता कुछ सीख लेती और न ही प्रशासन। हैरानी की बात है कि, किसी ने यह देखने-समझने की कोई कोशिश नहीं की कि, भीड़ को संभालने की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं ? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि, इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी कागजी खानापूर्ति करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
जैसे-जैसे जीवन में धर्म का पाखण्ड फैलता जा रहा है, सुरक्षा उतनी ही कम हो रही है। जैसे-जैसे प्रशासनिक सर्तकता की बात सुनाई देती है, वैसे-वैसे प्रशासनिक कोताही के सबूत सामने आते हैं। सरकार और विभाग जितनी तत्परता मुआवजा देने और जाँच समिति बनाने में दिखाते हैं, अगर सुरक्षा प्रबंधों में इतनी तत्परता दिखाएं तो ऐसे जघन्य हादसों की संख्या घट सकती है।
बहरहाल, आने वाले दिनों में किसी के सिर पर लापरवाही का ठीकरा फोड़ा जाएगा, मगर मौतों का कसूरवार कौन है? जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उनकी कमी कैसे पूरी होगी ? इससे जुड़ी कार्रवाइयों से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि, उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना की जाँच के आदेश दे दिए हैं और दोषी लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है, क्योंकि आमतौर पर यही देखने में आता है कि इस तरह के मामलों में कार्रवाई के नाम पर कुछ अधिक नहीं होता। इसी कारण रह-रहकर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और बड़ी संख्या में श्रद्धालु जान गंवाते हैं। इसके बावजूद कोई सबक सीखने को तैयार नहीं दिखता है। धार्मिक आयोजनों में अव्यवस्था के चलते लोगों की जान जाने के सिलसिले पर इसलिए विराम नहीं लग पा रहा है, क्योंकि दोषी लोगों के खिलाफ कभी ऐसी कार्रवाई नहीं की जाती, जो नजीर बन सके।