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हिंदी की बिंदी का मजाक

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हिंदी की बिंदी…

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग १९२० से चल रही है, जिसकी शुरुआत महात्मा गाँधी द्वारा की गई थी, जो सौ वर्ष बाद भी झूला झूल रही है। हिंदी बोलने वालों की संख्या वास्तव में बढ़ गई है, हाँ पर हममें से कितनों के बच्चे हिंदी माध्यम से पढ़ रहे हैं ? जितने भी आर्थिक सम्पन्न और समृद्ध हैं, वे अपनी संतानों को हिंदी माध्यम के विद्यालयों में नहीं पढ़ाना चाहते।
हिंदी के संघर्ष की शुरुआत दक्षिण राज्यों से शुरू हुई थी, विशेषकर तमिलनाडु। उसके बाद केरला, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और उसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा भी विरोध है। जब हमारी सरकार विशेष रूप से केंद्र सरकार की कार्य प्रणाली अंग्रेजी में है, तो किससे अपेक्षा करेंगे कि हिंदी को बढ़ावा मिले, कैसे मिलेगा ?
हिंदी एक औपचारिकता की भाषा बनी हुई है। ऐसा नहीं कि पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों द्वारा हिंदी नहीं जानी जाती है, जब हिंदी सिनेमा का चलन वहां पर बहुत है तो इसका मतलब वे हिंदी जानते हैं, बोलते हैं, पर वार्तालाप नहीं करना चाहते हैं। एक बात और भी है कि, हम हिंदीभाषियों ने भी अन्य भाषा को न पढ़ा, लिखा और न व्यवहार में उतारा।
आज हम बहुत खुश होते हैं कि हिंदी भाषा का अध्ययन विश्व के कई देशों के विश्वविद्यालयों में करवाया जा रहा है, पर बहुत नगण्य संख्या है।
जब हम हिंदी नहीं अपना पाए, अपनी मूल भाषा, बहुतायत से बोली जाने वाली भाषा का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, तो हम अपनी कौन-सी संस्कृति से अवगत कराना चाहते हैं ? महाकाल और ओंकारेश्वर के दर्शन से क्या हमारी संस्कृति का दिग्दर्शन होगा ? मात्र खानापूर्ति है।
करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद भी अपनी मूल भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत नहीं कर पाए, बस भीड़ तंत्र में अपनी वाह-वाही लूटकर अपनी खुद की पीठ थपथपाना, इससे क्या होगा ?

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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